साल में सिर्फ तीन दिनों तक देवी दर्शन

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कानपुर। शक्ति की देवी दुर्गा के दर्शन और आराधना के लिए समय का बंधन नहीं है मगर उत्तर प्रदेश की औद्योगिक नगरी कानपुर में एक मंदिर ऐसा है जहां कपाट पूरे वर्ष में सिर्फ नवरात्र के अंतिम तीन दिन के लिए खोले जाते हैं।  


 

मंदिर की देखभाल में लगे परिवार के दो धडों के बीच वर्चस्व को लेकर मनमुटाव के कारण हालांकि पिछले तीन साल से आम श्रद्धालुओं का मंदिर में प्रवेश निषेध कर दिया गया है और हजारों श्रद्धालु माता के अद्‍भुत रूप के दर्शन करने से वंचित हैं।        
 
शहर के बीचोंबीच भीड़भाड़ वाले कोतवाली क्षेत्र के निकट शिवाला में स्थित छिन्नमस्तिका देवी मंदिर के कपाट साल में पड़ने वाले दो नवरात्रों के दौरान सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन खोले जाते हैं।        
       
नवरात्र में कल सप्तमी को मंदिर का कपाट खुलेगा। यहां मां पार्वती के रूप में स्थित देवी की प्रतिमा धड़विहीन है जबकि उससे निकलने वाली रक्त की तीन धाराएं उनकी सहचरियों की प्यास बुझाते दिखती हैं।
 
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार सृष्टि निर्माण की अभिलाषा मन में संजोए मां पार्वती एक दिन अपनी दो सहचरियों डाकिनी और वर्णिनी के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थीं  कि इस बीच उन्हें काम और रति सहवास क्रीड़ा करते दिखे। यह देखकर मां तथा सहचरियों के कंठ अचरज के कारण सूख गए। माता पार्वती ने अपने नाखूनों से अपना शीश छिन्न-भिन्न कर दिया।
       
मां के कटे शीश से रक्त की तीन धाराएं गिरीं जिससे मां और सहचरियों ने अपनी प्यास बुझाई। विश्व में माता के इस रूप को छिन्नमस्तिका के रूप में जाना गया। मंदिर प्रबंधक के के तिवारी ने बताया कि कलयुग की देवी के रूप में विख्यात देवी के मंदिर के पट सप्तमी को खुलते है जहां भोर में बकरे की बलि दी जाती है तथा कटे सर पर 
कपूर रखकर मां की आरती की जाती है और नारियल फोड़ा जाता है।
      
उन्होंने बताया कि मंदिर में 23 महादेवियों के साथ 10 महाविद्याएं विराजमान हैं। मां का मूलनिवास झारखंड में हजारीबाग जिले के राजरप्पा में स्थित है। श्री तिवारी ने आम श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के कपाट बंद किए जाने के बारे में कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। 
 
उन्होंने कहा कि हालांकि मंदिर में पूजन पाठ पूर्व के वर्षों की भांति यथावत होता है। सप्तमी, अष्टमी और नवमी को पूरे विधिविधान से पूजा करने के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
 
इस बीच, मंदिर प्रशासन से जुड़े सूत्रों ने बताया कि मंदिर को आम श्रद्धालुओं के लिए बंद करना वास्तव में मंदिर की देखभाल में लगे दो परिवारों के वर्चस्व को लेकर आपसी मनमुटाव का नतीजा है जिसका खामियाजा हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं को उठाना पड़ रहा है।
        
उन्होंने बताया कि यह पांचवीं नवरात्र है जब मंदिर के कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए नही खुलेंगे। इससे पहले श्रद्धालु मनौती के लिए दो सेब तथा एक कलावा लेकर आते हैं और उसमें से एक सेब मां के चरणों में रख निवेदन किया जाता था और कलावा मंदिर के पुजारी से बंधवाया जाता था। यह कलावा मन्नत पूरी होने तक श्रद्धालु कलाई में बांधे रहते थे।
      
मनोकामना पूरी होने पर पूजन की पहली प्रक्रिया को दोहराया जाता था। श्रद्धालु को मां को भेंट स्वरूप चढ़ाए गए दोनों सेब और कलावा प्रसाद के तौर पर प्राप्त होते थे। (वार्ता)

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