शाक्त की शक्ति का रहस्य

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
॥ या देवी सर्वभूतेषू शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

 
शक्ति से सृजन होता है और शक्ति से ही विध्वंस। वेद कहते हैं शक्ति से ही यह ब्रह्मांड चलायमान है।...शरीर या मन में यदि शक्ति नहीं है तो शरीर और मन का क्या उपयोग। शक्ति के बल पर ही हम संसार में विद्यमान हैं। शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है। 
माँ पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर माँ प्रकृति है। जहाँ भी सृजन की शक्ति है वहाँ प्रकृति ही मानी गई है इसीलिए माँ को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है। जिसमें भी जन्म देने की शक्ति है वह प्रकृति ही हैै।

अनादिकाल की परम्परा ने माँ के रूप और उनके जीवन रहस्य को बहुत ही विरोधाभासिक बना दिया है। वेदों में ब्रह्मांड की शक्ति को चिद् या प्रकृति कहा गया है। गीता में इसे परा कहा गया है। इसी तरह प्रत्येक ग्रंथों में इस शक्ति को अलग-अलग नाम दिया गया है, लेकिन इसका शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती से कोई संबंध नहीं। फिर भी पुराणकारों ने सभी का संबंध दुर्गा से जोड़ दिया। दुर्गा नाम तो दुर्गमासुर नामक असुर का वध करने के कारण पड़ा। असल में तो माता का मान अम्बा और जगदम्बा है।  दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करके जनता को कुतंत्र से मुक्त कराया था। उनकी यह पवित्र गाथा मर्केण्डेय पुराण में मिलती है।

इस समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं सिद्धियाँ और शक्तियाँ। स्वयं हमारे भीतर भी कई तरह की शक्तियाँ हैं। ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, मन:शक्ति और क्रियाशक्ति आदि। अनंत हैं शक्तियाँ। वेद में इसे चित्त शक्ति कहा गया है जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है। यह शक्ति सभी के भीतर होती है।

माँ पार्वती : माँ पार्वती अपने पिछले जन्म में सती थीं। ये सती शब्द बिगड़कर शक्ति हो गया। शक्ति का अब अर्थ ताकत होता है। पुराणों अनुसार माँ सती के पिता का नाम दक्ष प्रजा‍पति और माता का नाम मेनका है। यज्ञ की अग्नि में दाह करने के बाद उन्होंने पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती अर्थात पर्वत राज की पुत्री और पर्वतों की रानी।  इन्हें हिमालय की पुत्री अर्थात उमा हैमवती भी कहा जाता है।  

भैरव, गणेश और हनुमान : अकसर जिक्र होता है कि माँ दुर्गा के साथ भगवान भैरव, गणेश और हनुमानजी हमेशा रहते हैं। प्राचीन दुर्गा मंदिरों में आपको भैरव और हनुमानजी की मूर्तियाँ अवश्य मिलेंगी। दरअसल भगवान भैरव दुर्गा की सेना के सेनापति माने जाते हैं और उनके साथ हनुमानजी का होना इस बात का प्रमाण है कि राम और शिव का काल एक ही रहा होगा। फिर भी यह शोध का विषय है।

नवदुर्गा : मार्कण्डेय पुराण में परमगोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों की रक्षार्थ बताया गया है। जो देवी की नौ मूर्तियाँ-स्वरूप हैं, जिन्हें 'नवदुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है।

शाक्त धर्म का उद्देश्य :
सभी का उद्देश्य मोक्ष है फिर भी शक्ति का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है। शक्ति ही धर्म है। शक्ति ही सत्य है। शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की हम सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियाँ प्राप्त करते रहते हैं।

शाक्त सम्प्रदाय : हिंदुओं के दो प्राचीन सम्प्रदाय हैं- शैव और वैष्णव। शाक्त सम्प्रदाय को शैव संप्रदाय के अंतर्गत माना जाता है। शाक्तों का मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण है इसीलिए वे देवी दुर्गा को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं। मां जगदम्मा त्रिदेवों की जननी है। 

सिंधु घाटी की सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। शाक्त सम्प्रदाय प्राचीन सम्प्रदाय है। गुप्तकाल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रीय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ।

शाक्त सम्प्रदाय में दुर्गा के संबंध में 'श्री दुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें 108 देवीपीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी 51-52 शक्तिपीठों का खास महत्व है।

॥ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे॥
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