क्या आप वास्तु अनुरूप कर रहे हैं नवरात्रि का पूजन

Webdunia
नवरात्र पूजन में क्या आपने रखा है वास्तु का ध्यान?  
 
नवरात्र में यूं तो मां दुर्गा की आराधना पूरे विधि-विधान से की जाती है, लेकिन इस दौरान देवी दुर्गा के 9 स्वरूपों की आराधना के वक्त अगर वास्तुसम्मत कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो आराधना के फल में अतिशय वृद्धि होती है। वास्तु में ईशान कोण को देवताओं का स्थल बताया गया है इसलिए नवरात्र काल में माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में की जानी चाहिए।
 
इस दिशा में शुभता का वैज्ञानिक कारण यह है कि पृथ्वी की उत्तर दिशा में चुंबकीय ऊर्जा का प्रवाह निरंतर होता रहता है‍ जिससे उस स्थल पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ता रहता है। दूसरा कारण पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 अंश पूर्व की ओर झुकी हुई है। इस कारण पृथ्वी पूर्व की तरफ हटकर 66.5 पूर्वी देशांतर से यह दैवीय ऊर्जा पृथ्वी में प्रविष्ट होती है, जो ईशान कोण क्षेत्र में पड़ता है।
 
दूसरी बात जो गौर करने लायक है कि अखंड ज्योति को पूजन स्थल के आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिए, क्योंकि आग्नेय कोण अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। यदि नवरात्र पर्व के दौरान इस कोण में अखंड ज्योति रखी जाती है तो घर के अंदर सुख-समृद्धि का निवास होता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। वैसे भी वास्तु में बताया गया है कि शाम के समय पूजन स्थान पर ईष्टदेव के सामने प्रकाश का उचित प्रबंध होना चाहिए। इसके लिए घी का दीया जलाना अत्यंत उत्तम होता है। इससे घर के लोगों की सर्वत्र ख्याति होती है।
 
ALSO READ: रामचरितमानस के 10 चमत्कारी दोहे, जो देते हैं हर तरह के वरदान
 
नवरात्र काल में यदि माता की स्थापना चंदन की चौकी या पट पर की जाए तो यह अत्यंत शुभ रहता है, क्योंकि वास्तुशास्त्र में चंदन को अत्यंत शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का केंद्र माना गया है जिससे वास्तुदोषों का शमन होता है।
 
इस दौरान साधना किस दिशा में जा रही है, यह बात भी अहम है जिसका ध्यान रखा जाना चाहिए। नवरा‍त्र काल में पूजन के समय आराधक का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रहना चाहिए, क्योंकि पूर्व दिशा शक्ति और शौर्य का प्रतीक है। साथ ही इस दिशा के स्वामी सूर्य देवता हैं, जो प्रकाश के केंद्रबिंदु हैं इसलिए साधक को अपना मुख पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए जिससे साधक की ख्याति चारों ओर प्रकाश की तरह फैलती है।
 
ALSO READ: चैत्र नवरात्रि में इन राशि मंत्रों से प्रसन्न होंगी मां सरस्वती
 
नवदुर्गा यानी नवरात्र की 9 देवियां हमारे संस्कार एवं आध्यात्मिक संस्कृति के साथ जुड़ी हुई हैं। इन सभी देवियों को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिंदूर, लाल वस्त्र साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग के होते हैं, वही अर्पित किए जाते हैं। नवरा‍त्र पूजन में प्रयोग में लाए जाने वाले रोली या कुमकुम से पूजन स्थल के दरवाजे के दोनों ओर स्वास्तिक बनाया जाना शुभ रहता है। इससे माता की कृपा साधक के सारे दुखों को हर सुखों के दरवाजे खोल देती है। साथ ही यह रोली, कुमकुम सभी लाल रंग से प्रभावित होते हैं और लाल रंग को वास्तु में शक्ति और सत्ता का प्रतीक माना गया है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि आप विजयश्री को अपने मस्तक पर धारण करके अर्थात मुकुट बना के रोली या कुमकुम के माध्यम से पहन लेते हैं।
 
नवरात्र के 9 दिनों तक चूने और हल्दी से घर के बाहर द्वार के दोनों ओर स्वास्तिक चिह्न बनाना चाहिए। इससे माता प्रसन्न हो साधक को सुख और शांति देती है, वहीं अक्सर घरों में शुभ कार्यों में हल्दी और चूने का टीका भी लगाया जाता है जिससे वास्तु दोषों का नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति पर नहीं होता है। पूजा स्थल को साथ-सुथरा रखना चाहिए। यदि आप ऐसी जगह पर हैं, जहां आपके ऊपर बीम है तो उसे ढंकने के लिए चांदनी का प्रयोग किया जाना चाहिए, जैसे हवन के समय यह बीचोबीच में लगाई जाती है। 

ALSO READ: सती से शक्ति बनने की दिव्य कथा
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

23 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

23 नवंबर 2024, शनिवार के शुभ मुहूर्त

Vrishchik Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: वृश्चिक राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह की 20 खास बातें

Kaal Bhairav Jayanti 2024: काल भैरव जयंती कब है? नोट कर लें डेट और पूजा विधि

अगला लेख