ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा की दूसरी शक्ति

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प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
 
या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
 

 
अर्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।
 
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।
 
इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। जिससे उनका जीवन सफल हो सके और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।
 
मां दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। 
 
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
 
इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है कि जिनका विवाह तय हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।

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