रिकॉर्ड मतदान से राजनीतिज्ञ, अलगाववादी हुए खुश

-सुरेश एस डुग्गर

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अनंतनाग तथा श्रीनगर के संसदीय क्षेत्रों में 27 प्रतिशत मतदान को अपनी-अपनी जीत बताने वाले राजनीतिक दलों और अलगाववादी नेताओं के पल्ले अब यह बात पड़ने लगी है कि कश्मीरी जनता ने दोनों को खुश करने की खातिर जो बीच का रास्ता चुना है, वह यही संकेत दे रहा है कि मतदान के अगले चरण में भी उनका यही रुख रहेगा।

वर्ष 2004 के मतदान से 15 प्रतिशत ज्यादा मतदान कर कश्मीरियों ने राजनीतिक दलों को खुश किया है। इसके प्रति कोई दो राय नहीं है। नेकां नेता कहते थे कि आतंकी धमकी और अलगाववादियों के चुनाव बहिष्कार के आह्वान के बावजूद इतने लोगों का मतदान के लिए निकलना अपने आप में रिकॉर्ड है।

नेकां, पीडीपी और कांग्रेस ने कश्मीरी मतदाताओं को इसके लिए शाबासी दी है। पीडीपी के संरक्षक मुफ्ती मुहम्मद सईद कहते थे कि किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि कश्मीरी 2004 के मतदान के अपने रिकॉर्ड को ही तोड़ डालेंगे। हालांकि पिछले साल के विधानसभा चुनावों के मतदान का रिकॉर्ड वे नहीं तोड़ पाए हैं। वैसे भी कश्मीरियों के लिए संसदीय चुनाव इतने अहम नहीं रहे हैं।

कांग्रेस प्रवक्ता रवींद्र शर्मा का कहना था। 27 प्रतिशत मतदान को लेकर अगर राजनीतिक दल खुश हैं तो खुशी का आलम अलगाववादी खेमों में भी है। कट्टरपंथी सईद अली शाह गिलानी का हुर्रियत गुट और नर्मपंथी मीरवायज उमर फारुक का धड़ा अनंतनाग के वोटरों को मुबारकबाद देते हुए कहता था कि अगले चरणों में भी कश्मीरी इसी प्रकार का रुख दिखाएंगे। उन्होंने अगले चरण के लिए भी बहिष्कार और हड़ताल के आह्वान को पुनः दोहराया था।

अलगाववादी इसे अपनी जीत मान रहे हैं। वे मतदान प्रतिशत में हुई बढ़ोतरी को नजरअंदाज करते हुए कहते थे कि कश्मीरियों ने उनके बहिष्कार के आह्वान को माना है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस आह्वान की उन्होंने 'लाज' रख ली है।

हालांकि जेकेएलएफ के नेताओं का कहना था कि मतदान प्रतिशत को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है तो दुख्तराने मिल्लत की अध्यक्ष आयशा अंद्राबी कहती थीं कि कश्मीरियों ने चुनाव से अपने आपको दूर रखकर यह बता दिया है कि वे भारतीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं रखते हैं। इतना जरूर था कि मतदान करवाने की खातिर अघोषित कर्फ्यू को हथियार बनाने वाला नागरिक प्रशासन भी अपनी रणनीति पर खुश नजर आ रहा था।

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