नरेन्द्र मोदी : एक ईमानदार आवाज है- महेश भट्ट

मधु किश्वर
गुरुवार, 8 मई 2014 (13:14 IST)
फिल्मकार महेश भट्‍ट की पहचान एक सोशल एक्टीविस्ट की भी है। उन्हें गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्द्र मोदी का कट्‍टर विरोधी भी माना जाता है। जफर सरेशवाला की ही कड़ी में हम जानेंगे मोदी के बारे में महेश भट्‍ट की राय।
 
जफर की मोदी से मुलाकात को लेकर सवाल उठाए जा सकते हैं कि क्या आप अकेले ऐसे थे, जिसका इतने खुले दिल से स्वागत किया गया? क्या अन्य मुस्लिमों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया जाता है?
 
जफर कहते हैं कि मैं आपको ऐसे बहुत सारे उदाहरण दे सकता हूं, लेकिन इस मामले में आप महेश भट्‍ट के विवरण को बहुत ही आंखें खोल देना वाला पाएंगे। सूरत की एक सार्वजनिक सभा में महेश भट्‍ट ने मोदी की कटु आलोचना की थी, लेकिन उन्हें कुछेक घंटों बाद ही मोदीजी का फोन मिला। यह सारी जानकारी खुद महेश भट्‍ट ने मुझे दी थी जो कि मोदी के सबसे कट्‍टर विरोधी हैं। 
 
वर्ष 2004 में मैं (महेश भट्‍ट) सूरत में महमूद मदनी साहब के साथ नरेन्द्र मोदी विरोधी भाषण देने के लिए गया था। उस समय गुजरात के लोग असंख्य समस्याओं का सामना कर रहे थे। पैगम्बर की एक हदीस है जिसे मैंने कंठस्थ कर लिया था क्योंकि यह मुझे बहुत अच्छी लगती थी। इसमें कहा गया है कि 'मजलूम हो तो मदद कर, जालिम हो तो वो भी मदद कर'।
 
मैंने मौलाना से पूछा कि इसका क्या अर्थ है : उन्होंने समझाया कि पैगम्बर कहते हैं कि तानाशाह भी आपका भाई है। एक तानाशाह की तानाशाही खत्म करने में मदद करना भी तुम्हारी ड्यूटी है। मैंने पूछा कि क्या यह हदीस में लिखा है, उन्होंने कहा- हां, प्रत्येक व्यक्ति एक मजलूम की मदद करेगा, लेकिन एक जालिम की नहीं, लेकिन जालिम जब अपने जुल्म से आजाद हो जाता है, यही असली शुरूआत है।
 
केम छो महेश भाई : मुझे याद है कि मैंने जमात-ए-इस्लामी के मंच से क्या कहा था- नरेन्द्र मोदी सुन रहे हो? जिस मजहब को तुम आए दिन कहते हो कि यह आतंकवादियों की गंगोत्री है, उसके रसूल ने क्या कहा है? मैंने पूरे जोश से हदीस को दोहराया जो मुझे गांधीजी की याद दिलाती थी। इसके तुरंत बाद जब मैं दिल्ली में था तब मुझे एक कॉल मिला।
 
इसमें कहा गया कि महेश साहब आपसे गुजरात के मुख्यमंत्री बात करना चाहते हैं। मैंने सोचा कि यह किसी की शरारत है क्योंकि मैं तो उनका कट्‍टर विरोधी था। वे मुझसे भला बात क्यों करेंगे? इससे पहले कि मैं कुछ सोच पाता। मोदी लाइन पर आए और उन्होंने गुजराती में पूछा- महेश भाई केम छो (महेश भाई कैसे हो)?
 
मैंने कहा कि मैं गुजराती समझ सकता हूं, लेकिन बोल नहीं सकता हूं। मेरे पिता गुजराती थे, लेकिन मैंने कभी गुजराती नहीं बोली। इसलिए वे हिंदी में बोलने लगे और उन्होंने कहा कि सुना है कि आप हमसे बहुत खफा हैं। मैंने कहा- हां, बहुत सारी समस्याएं हैं। गुजरात में मुस्लिमों पर जो अत्याचार हुए हैं, उनका निवारण नहीं किया गया है। वे यहां से वहां शोक जाहिर करते हैं और रोते हैं। जमात के लोगों की रैली में मैंने कुछ मुद्‍दों को उठाया था।
 
उन्होंने मुझे सुना और कहा- महेश भाई, 5 आइए, 50 आइए, 500 आइए और 5000 आइए, जहां आना है आइए। मैं मिलने को तैयार हूं। मैं आपकी सारी समस्याएं को सुलझाने के लिए तैयार हूं। मैं आपको यही कहना चाहता हूं कि मैं उपलब्ध हूं।
 
जब मुख्यमंत्री ने यह कहा तो उनकी बातों में मुझे पूरी तरह से सच्चाई लगी, यह ना पूछें कि मैं ऐसा क्यों कहता हूं। जब दिल एक आवाज सुनता है तो जान जाता है कि यह ईमानदार आवाज है। भले ही यह आवाज ऐसे व्यक्ति की हो जिसकी आपने सार्वजनिक तौर पर कड़ी आलोचना की हो।
 
मैंने कहा- ऐसा कहने के लिए आपका धन्यवाद। लेकिन चूंकि मैंने ये सब बातें जमात के मंच से कही थीं, इसलिए आपका यह संदेश महमूद भाई को बताऊंगा और फिर आपसे बात करूंगा।
 
लेकिन महमूद ने किया मायूस...
 

मैंने तुरंत ही महमूद मदनी से सम्पर्क किया और उनसे कहा कि हदीस ने अपना कमाल कर दिखाया है। लगता है कि रसूल की हदीस जाके जालिम की छाती चीर कर निकल गई है क्योंकि जालिम ने फोन किया है।

मोदी साहब का फोन आया था उन्होंने कहा था कि आप लोगों को जहां आना हो, जब भी आना हो, मुझसे मिलें मैं आपकी सारी समस्याएं हल कर दूंगा। मदनी ने कहा कि बहुत अच्छा, हम अपनी गवर्निंग बॉडी की एक बैठक बुलाएंगे। तब उनके पिता जीवित थे। इसलिए उन्होंने कहा कि मैं अपने पिता से बात करूंगा और फिर आपसे बात करता हूं। पर सच यह है कि उन्होंने मुझसे बात नहीं की।

अब जब मैं और महमूद भाई बात करते हैं तो मैं उनसे कहता हूं कि महमूद भाई इतिहास पे जब मैं किताब लिखूंगा तो ये तो बोलना पड़ेगा कि उसने मुझे फोन किया था, मैंने आपसे कहा था। आपने मीटिंग करी थी, लेकिन आपने जवाब नहीं दिया था। वे कहते हैं, हां, मैंने जवाब नहीं दिया, मेरे वालिद ने कहा कि बात करनी चाहिए। मेरे जो आसपास के लोग थे उन्होंने कहा कि ये नहीं करना। इस बात पर कोई भी बात करना सही नहीं होगा। आप उनकी राजनीति के मोहरे बन जाएंगे।

आज भी मैं जब महमूद भाई से बात करता हूं और मैं उनसे पूछता हूं कि आप मोदी से क्यों नहीं मिले। वे वही पुराना जवाब देते हैं। नरेन्द्र मोदी के साथ वह मेरी पहली बातचीत थी।

भट्ट भी नहीं मिले : जब मैंने (जफर) महेश भट्‍ट से पूछा कि वे खुद क्यों नहीं गए और मोदी से मिलकर मुस्लिमों की तकलीफें बताते। उनका कहना था : नहीं, मैं उनसे नहीं मिला क्योंकि मैं उनके संगठन का हिस्सा नहीं था। यह जमात की एक रैली थी। मैंने फिर भी जोर देकर कहा कि आपको मुस्लिमों की समस्याएं पता हैं, तब जमात ही क्यों कहे? आप किसी के भी साथ जा सकते थे।

देखिए मैं किसी भी गुट के साथ नहीं जुड़ा था। तीस्ता का गुट अपने आप काम रहा था। चूंकि इराक आक्रमण के समय मैं महमूद भाई से मिल चुका था इसलिए मैंने उनके मंच से यह बात कही थी।

तीस्ता को क्यों नहीं दी भट्‍ट ने सलाह : क्या आपने यह नहीं सोचा कि आप तीस्ता (सीतलवाड़) से मिलते और कहते कि मोदी तकलीफों का निवारण करने के लिए तैयार हैं। आप उनसे बात क्यों नहीं करते हैं? मैंने तीस्ता से कहा था क्योंकि उसे और अन्य लोगों को पता चल गया था कि मैंने जफर से कहा है कि वह मोदी से बात करे। यह अफवाह भी थी कि मैंने एक तरह की पिछले दरवाजे से शांति प्रक्रिया शुरू की है? जबकि कोई पिछला दरवाजा नहीं था और क्यों होना चाहिए था?

यह एक समुदाय की समस्या है और वह (जफर) गुजरात में रहता है, वह समस्या के बारे में जानता है और मोदी उसके राज्य के चुने गए प्रतिनिधि हैं। वह यहां-वहां दौड़ता फिरता है और उसे किसी की मदद नहीं मिलती है, इसलिए वह और क्या करे? उसे सरकार के साथ बातचीत शुरू करनी चाहिए। इसे रुख में नरमी माना गया था, लेकिन रुख में परिवर्तन किसलिए?

अगर वह (तीस्ता सीतलवाड़) सुप्रीम कोर्ट जा सकती है, हाईकोर्ट जा सकती है, लेकिन वह एक निर्वाचित मुख्‍यमंत्री से क्यों नहीं मिलती? क्या आप कह रहे हैं कि तीस्ता ने कभी भी मोदी से मिलने की कोशिश नहीं की? (भट्‍ट कहते हैं) मुझे नहीं पता, मैं तीस्ता के इतना करीब नहीं हूं कि मुझे जानकारी हो और मैं आम तौर पर यह नहीं पूछता कि वे क्या करते हैं?
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