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अप्रवासी भारतीयों की रंगबिरंगी होली

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हम तो हैं परदेस में, देस में उड़ता होगा गुलाल 



 
परदेस में अपनों से दूर बसे भारतीय होली के मौके पर अपनों के साथ गुझिया की मिठास और पूरे बदन पर हरे पीले अबीर गुलाल के एहसास की कसक इस कदर महसूस करते हैं कि इस दिन उनके जहन में यादों का अबीर उड़ने लगता है और आंखें अपनों की याद से भीग जाती हैं।
 
अपनी जमीन और अपनी संस्कृति से जोड़ने वाले इस पर्व को ये अप्रवासी भारतीय उन देशों के तौर तरीकों के अनुरूप मनाते हैं जिन देशों में वे रह रहे हैं, लेकिन उनके दिल से यही निकलता है- 'हमारे देश की होली की बात ही निराली है।'


 
दुबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहे एमके न्याल ने ई-मेल के माध्यम से बताया ‘पांच साल हो गए यहां रहते हुए। यहां हम उस तरह होली नहीं मना सकते जिस तरह भारत में मनाते थे। होली पर यहां छुट्टी भी नहीं रहती क्योंकि यह इस देश का पर्व नहीं है। भारतीय दूतावास में होली पर आयोजन होता है और भारतीय समुदाय के लोग उसमें शामिल होते हैं।'
 
न्याल कहते हैं 'यह एक रस्म जैसा ही होता है। मन तो नहीं भरता लेकिन क्या करें? मुझे भारत की होली बहुत याद आती है। हम लोग दस बारह दिन पहले से लकड़ियां इकट्ठी करने लगते थे होली जलाने के लिए। होली के दिन तो इतनी धूम मचती थी कि पूछिए मत। यहां ऐसा कुछ भी नहीं होता।’
 

 


 


नेपाल की राजधानी काठमांडू में रह रहे जयेश गुप्ता कहते हैं 'यहां तो हफ्ते भर तक होली मनाई जाती है। पहले दिन उस स्थान के समीप बांस का एक खंभा गाड़ा जाता है जहां होली जलाई जानी है। इस खंभे को चीर कहते हैं।
 
चीर के बारे में धारणा है कि यहां मांगी जाने वाली मन्नत पूरी होती है। इसलिए लोग मन्नत मांगते हुए इसमें रंगीन कपड़े की पट्टियां लपेटते हैं। पूरे सात दिन तक यह खंभा गड़ा रहता है। सातवें दिन होलिका दहन के साथ ही चीर को भी अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है।
 
गुप्ता कहते हैं 'होली पर यहां राष्ट्रीय अवकाश रहता है और भारतीय समुदाय के लोग एक दूसरे से मिलते हैं लेकिन अपने देश की होली की बात ही निराली होती है। मैं यहां करीब नौ साल से हूं। अब यहां भी होली पर पहले जैसा उत्साह नहीं दिखता।'
 
अमेरिका के न्यूजर्सी में रह रहे सॉफ्टवेयर इंजीनियर योगेश सिंह कहते हैं 'यहां भारतीय समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हैं लेकिन होली पर छुट्टी नहीं होती। नियमित रूप से काम चलता है। सप्ताहांत में भारतीय समुदाय के लोग मंदिर जाते हैं। वहीं होली उत्सव होता है। हम लोग पूजा के बाद सूखे रंगों से होली खेलते हैं और फिर खाना पीना होता है।'
 
सिंह कहते हैं कि उनके बच्चों को भारत की होली बहुत अच्छी लगती है। वह बताते हैं 'मौसम ठंडा होने की वजह से यहां पानी वाली होली खेलने का सवाल ही नहीं उठता। सुरक्षा और प्रदूषण संबंधी नियमों के चलते होली जला भी नहीं सकते। मंदिर में होलिका दहन होता है। मेरे माता पिता भारत में हैं और मेरे बच्चों को वहां की होली बहुत अच्छी लगती है।' जयेश गुप्ता बताते हैं कि तराई क्षेत्र भारत की सीमा से लगा है और वहां होली की खूब धूम रहती है। वहां भारतीयों खास कर मारवाड़ियों की बहुलता है।
 
त्रिनिदाद और टोबैगो में होली को फगवा कहा जाता है। होली की शुरुआत यहां 1845 के आसपास हुई थी, जब भारत से कई लोगों को यहां गन्ने की खेती के लिए बंधुआ मजदूरों के तौर पर लाया गया था। यहां बाकायदा होलिका दहन होता है और रंग खेला जाता है।
















 
सूरीनाम और गुयाना में भी इसी तरह होली मनाई जाती है। यहां मंदिरों में रातों को महफिल जमती है जिसे चौताल कहा जाता है। मंदिरों में फाग गायन होता है जिसे तान कहा जाता है। गुयाना में भी होली को फगवा कहा जाता है और इस दिन यहां राष्ट्रीय अवकाश होता है।
 
दक्षिण अफ्रीका में अन्य देशों की तुलना में प्रवासी भारतीयों की संख्या सर्वाधिक है और वे यहां भारतीय परंपरा के अनुसार होली मनाते हैं।
 
भारतीयों की बड़ी आबादी वाले देश मॉरीशस में होली पर सरकारी छुट्टी होती है। यहां भी बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के तौर पर होलिका दहन और अगले दिन रंग खेलने की परंपरा का निर्वाह होता है।
 
अमेरिका, ब्रिटेन, पाकिस्तान, बांग्ला देश आदि में भी बसा भारतीय समुदाय होली मनाता है। लेकिन उसे इन देशों के नियमों का भी ध्यान रखना पड़ता है।


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