खयालाते परीशाँ

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- पाशा रहमान

GN
आज उस नाजुक-अदा की याद फिर आई बहुत
जिसने मेरी एम मुद्दत थी शनासाई1 बहुत

काली जुल्फें, मस्त आँखें, अब्रो-बाराँ2, बूए-गिल3
मेरे ढाका आज तेरी ‍याद फिर आई बहुत

कौन वह खुश-बख्त था? वह कौन था मर्दे-वफा?
किसके खूँ में डूबकर शमशी‍र लहराई बहुत

राहे-उलफत में निकलना था तकाजा-ए-जुनूँ
वैसे मैं भी जानता था होगी बहु‍त रुसवाई बहुत

हो गया मानूस मैं इस शहर से वैसे यहाँ
पहले-पहले तो तबियत मेरी घबराई बहुत

मेरी खामोशी को मेरी सर्द-महेरी4 मत समझ
तू यकीं कर मैं तेरे अब भी हूँ सौदाई बहुत।

1. जान-पहचान, 2. बादल और बारिश, 3. मिट्‍टी की सुगंध, 4. कठोरता।
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