भारतीय दलित साहित्य अकादमी से सम्मानित परिचय दास देवलास जिला आजमगढ़ में जन्मे। हिंदी में एम.ए. और गोरखपुर विवि से पी.एच.डी. की। नेपाल की थारू जनजाति के बीच सक्रिय रहे और उन पर 'थारू जनजाति की सांस्कृतिक परंपरा' नामक पुस्तक लिखी।
निर्वासन का प्रारब्ध
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मत सोचो कि वापसी इतनी सहज थी! पर्दे पर चित्रित पहाड़ इतना नीला! उस समय जब मन अशांत हो असुविधाजनक-सा लगे भूख से तड़पता हृदय लौटता है धरती के प्यार को किंतु वहाँ है निर्वासन का प्रारब्ध!
***** संभल कर
जितनी बार पता करो कानों में अँगुली रखकर विगत, अनागत व परिस्थिति की पीड़ा के भय से फिर से आत्मा के उत्कट अँधेरे में फिर से क्षितिज-विहीन राह से आकर अँजुलि भर रोशनी किसी ने उकेरा शिल्प जैसे अपनी अपूर्णता का रंगों से भरी साँझ की आत्मीय बाँहों में बीच वाले कमरे के दरवाजे से झाँका तो लगा कि कविता को संभलकर चलना चाहिए।