दिल के वीराना-ए-खामोश में इक उम्र के बाद आज यह कौन दबे पाँव चला आता है इस खराबे में भी क्या कोई परी उतरी है दिल की धड़कन है कि पायल की सदा है छम-छम जैसे पहरों कहीं बरबत-सा बजाए कोई किसके पैराहने-रंगी की बहारों के तुफल दिल में हर लहजा नए फूल खिल जाते हैं जाने किस दस्ते-हिनाई का तवस्सुर है कि आज चाक खुद जेबो-गरीबाँ के सिले जाते हैं कौन अँगड़ाई-सी लेता है यह सहमें-दिल में रगे-जाँ टूट के मैखाना बनी जाती है किसकी पायल की सदा घोल रही है अमृत तल्खी-ए-जीस्त इक अफसाना बनी जाती है किसकी खुशबू-ए-बदन है कि मेरे जेहन पर आज एक जादू की तरह छाए चली जाती है किसकी दोशीजगी-ए-जिस्म की गर्मी है कि जो मेरे अहसास को गर्माएँ चली जाती है सोचता हूँ कि किसी पैकरे-नाजुक के लिए दिल की उजड़ी हुई वादी को सजा दूँ पहले एक मुद्दत से निहाँ-खाना-ए-दिल है तारीक शमा नौखेज उम्मीदों की जला दूँ पहले लेकिन अब शमा जलाने की जरूरत भी नहीं चाँद आकाश से सीने में ढला आता है दिल के वीराना-ए-खामोश में इक उम्र के बाद एक अनजान दबे पाँव चला आता है।
1. वीराना-ए-खामोश-निर्जन स्थान 2. पैराहने-रंगी- रंगीन वस्त्र 3. रगे-जाँ- मेहंदी लगे हाथ 4. तल्खी-ए-जीस्त-गला और जेब 5. दोशीजगी-ए-जिस्म- सबसे बड़ी खून की रग 6. पैकरे-नाजुक- जिंदगी की कटुता 7. निहाँ-खाना-ए-दिल- कुमारपन 8. शमा नौखेज- कोमल शरीर।