COVID-19 पर कविता : यहां कोरोना का साया
- हरनारायण शुक्ला
यह कैसा वसंत आया,
उल्लास नहीं जो लाया,
संताप सब तरफ छाया,
यहां कोरोना का साया।
सुनसान नगर, सुनसान डगर,
सूने बाग-बगीचे,
व्यापारी अब कंगाल,
फटे हाल हैं फटे गलीचे।
बीमारी फ़ैली बेशुमार,
सब तरफ मरीजों की भरमार,
दवा की सबको है दरकार,
दवा नहीं है, सब लाचार।
रोगी ज्यादा, बिस्तर कम,
औजार नहीं, छाया है गम,
सांसों से लड़ते टूटा दम,
रोता हुआ बैठा हमदम।
जीवन-मृत्यु का संघर्ष,
सेवारत हैं डॉक्टर नर्स,
शीघ्र कोरोना जाए नर्क,
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