Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

प्रवासी कविता : कशिश तेरे मेरे बीच

हमें फॉलो करें प्रवासी कविता : कशिश तेरे मेरे बीच
webdunia

रेखा भाटिया

कशिश खत्म नहीं होगी
तेरे मेरे बीच
आज तुम उदास बैठे हो
मेरे सामने बिखरे हुए फूलों से !
 
तुम मुझे, मैं तुम्हें देख रहे हैं
दोनों इंतजार में बसंत के
शीत उदासी ओढ़े कशमकश में
देखो तुम और मैं कोशिश की थी !
 
तुम मेरा प्रेम नहीं समझे
मेरी कोशिश समझ सकते
पिंजरा नहीं रखा था मैंने कैद के लिए
आज़ादी जिसे मैं रोज रखती !
 
तुम्हें भायी थी किसी और की बगिया
बिन खुशबू थोड़े फूल ज्यादा थे वहां पर
मेरी कोशिश नई थी अभी, वक्त तो देते
कपोल से फूल खिलने जितना वक्त दे देते !
 
जब तुम जा चुके थे दुलारा था खुद को
मैंने कर ली दोस्ती अपने आप से पक्की
आज वसंत बाद ग्रीष्म भी चमक रहा है
मैं अब नहीं करूंगी इंतज़ार किया था कभी !
 
तुम अब भी इंतजार करना चाहते हो
यह कशिश कभी खत्म नहीं होगी
उदासी बढ़ने दो मैंने आंखें मूंद ली हैं
तुम भी लौट जाओ !
 
यह मिलन अधूरा जरूर रहा
शायद अधूरा ही रहेगा
प्रेम, प्रेम से बढ़कर रिहाई है
मुझे आजादी से परिपूर्ण कर गया !

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जानिए भगवान श्री गणेश के 12 नाम मंत्र और 1 कुबेर मंत्र,हर संकट का करेंगे अंत