Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मेरी, मेरे शहर शार्लिट और हिन्दू सेंटर की कहानी

Advertiesment
हमें फॉलो करें Story of city Charlotte
webdunia

रेखा भाटिया

कैसे एक व्यक्ति की सोच, उठाया गया एक सार्थक कदम और प्रयास भविष्य निश्चित कर, अस्तित्व को मजबूत कर, सभी को एकजुट कर सभी की ख़ुशियों का कारण बन जाता है। भविष्य को लेकर देखा गया एक सपना साकार होकर भविष्य को वर्तमान में संजो लेता है। आज मेरे शहर की भीड़ मुझे परेशान नहीं करती, हर त्योहार को परिवार के साथ उत्सव से मनाती हूं, हर दिन भारत यहीं पर जीती हूं। यह मेरी ही नहीं, शार्लिट में आए सभी भारतीयों की कई कहानियों में से एक कहानी है। covid की रफ़्तार कम होते ही जीवन फिर से सामान्य की ओर लौट रहा है।
 
एक शहर कब आपको अपनाता है, कब आपका अपना घर बन जाता है, जब वह शहर आपकी रूह में बस जाता है। जब आप उस शहर के लिबास, विचारों, स्वभाव और व्यक्तित्व को स्वयं दिल से अपनाते हो और वह शहर हमेशा के लिए आपका अपना बन जाता है आपका घर, जिसके साथ आप अपनी जिंदगी बिता सकते हो। दूसरा होता है सपनों का शहर जिसकी खूबसूरती, चकाचौंध, पहनावा आकर्षित करता है, भविष्य अधिक सुरक्षित लगता है, आप अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं, आप अधिक सफल होंगे अपने कर्मों से उस शहर में। मेरी कहानी में ऐसा कुछ भी नहीं है।
 
 
सन् 2000 में रोटी-रोजी की जरूरत शार्लिट शहर में लेकर आई, किस्मत ने तय किया था। न ही यह मेरे सपनों का शहर था, न ही बहुत प्रसिद्ध जिसका नाम मैंने सुना हो पहले। अमेरिका में आए नॉरफॉक, वर्जीनिया में, नॉरफॉक समुद्र किनारे बसा एक खूबसूरत शहर है जिसकी यादें भी अब धुंधली हो गई हैं, वहां अपनी जरूरतों की पोटली बांध आ पहुंचे अमेरिका।

 
पीछे छोड़ बड़ा-सा प्यार करने वाला परिवार और अपना देश भारत। एक राज आज साझा करना चाहूंगी। अपना घर, देश, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान छोड़ इस देश में बड़ा विचित्र लग रहा था। एक गोरी दोस्त बन गई, जो भरसक प्रयास करती यहां की भाषा, तौर-तरीके और सिस्टम सिखाने का। दोनों की सोच और संस्कृतियों में जमीन-आसमान का फर्क था। जुड़ाव तो दूर की बात थी, सामंजस्य बिठाना भी मुश्किल हो रहा था, कोई भी भारतीय आसपास नहीं रहता था। खैर, वह एक बेहतर दोस्त थी और बहुत मदद की। नॉरफॉक में एक-दो अविवाहित दक्षिण भारतीय युवा थे जिन्हें हिन्दी नहीं आती थी और संकोच में (22 साल पहले) उनके साथ क्या बात करती? अब आना था 5 घंटों की ड्राइविंग कर जनवरी की चरम शीत ऋतु में नॉर्थ कैरोलिना के शहर शार्लिट में। पता चला वह शहर दक्षिण में है और ठंड कम पड़ती, वहां पर भारतीय भी रहते हैं। उम्मीद की किरण मन में जागी।

 
ना मोबाइल था, ना जीपीएस, कागज का नक्शे हाथ में लिए चल पड़े गंतव्य पर। घने, गदराये बादल, हल्की बरसात और हड्डियों को जमा देने वाली ठंड। शार्लिट से 50 मील दूर थे कि अचानक बर्फ पड़ना शुरू हो गई, जो रास्ता 1 घंटे में तय होना था, पूरे 6 घंटों का सफ़र बन गया। शाम 6 के बजाय रात 12 बजे पहुंचे। सुनसान सड़कें, 12 इंच बर्फ की चादर ओढ़े एक गुमशुदा शहर में प्रवेश किया। सड़कें, पेड़, घर सब बर्फ में डूब चुके थे और उस बर्फ में धंस गईं उम्मींदें। भूख-प्यास से व्याकुल किसी तरह अपार्टमेंट में पहुंचे। सुबह सारा शहर बंद पड़ा था और बेटी ने खांसना शुरू कर दिया। यहां किससे मदद मांगे? नाउम्मीदी और गृहवियोग से सताए डर ने घेर लिया। जिस लोभ से यह शहर हमें खींच रहा था भारतीयों से मिलने की उम्मीद में। एक बड़ा झटका लगा।

 
इधर हमारे 1,200 डॉलर इंदौर शहर से आए एक भारतीय, जिसकी मदद हमने की थी जब उसकी जरूरत थी, उसकी नीयत में खोट आ गई और वह हमारे 1,200 डॉलर हड़पना चाहता था। शून्य से शुरू कर संघर्षों में मेहनत से कमाया धन जिसकी हमें नए शहर शर्लीट में अपना घर बनाने में बहुत जरूरत थी, हाथ से जाता दिखा। मन पर बोझ था, पास की फार्मेसी की दुकान पर बेटी की दवाई लेने चले गए और मुलाकात हुई एक अधेड़ भारतीय महिला से, मिलीजुली भावनाओं से बात की। उसने गोबिंद भोजवानी अंकल का नंबर दिया, क्योंकि हम सिंधी थे। उसने बताया कि इस शहर में कई भारतीय रहते हैं। सन् 2000 जनवरी का महीना और मैंने यूं ही भोजवानी अंकल को फ़ोन लगा दिया। डाउनटाउन में उनका ऑफिस है। उन्होंने कहा पति से कहो कि आकर मिलें। जो भी मदद चाहिए, जानकारी चाहिए, मैं दूंगा। और शुरू हो गया मुहरत शार्लिट शहर से एक डोर में बंधने का। शार्लिट शहर की जानकारी, शार्लिट शहर की कशिश, तिनका-तिनका बढ़ती ख़ुशियां और जुड़ता हमारा घरौंदा।

 
एक वाकये का जिक्र करना चाहूंगी इस शहर की कहानी शुरू करने से पहले, जो अभी बताना उचित है। वह भारतीय जिसकी नीयत में खोट आ गई थी, पैसे लौटने की एक शर्त रखने लगा। पहले तो नकली चेक भेजा फिर हमारी बैंक की इन्फॉर्मेशन और सोशल सिक्योरिटी नंबर मांगने लगा यह कहकर कि उसकी बैंक को पैसे अकाउंट में डालने के लिए चाहिए। मुझे कुछ नहीं सूझा। मैंने भोजवानी अंकल को कॉल किया यह बिना सोचे कि वे कितने व्यस्त हैं? भोजवानीजी (बिनाको रियल इस्टेट के मालिक) ने कहा किसी को भी अपनी इंफॉर्मेशन नहीं देना, उस आदमी से कहना पुलिस में शिकायत कर देंगे। पैसा भेजो वापस असली चेक से और भी कई बातें बताईं, जिन्होंने मेरी हिम्मत बंधा दी, मेरे विश्वास को फिर जगा दिया। पैसे भी वापस आ गए।

 
आज अंकल (यह व्यक्ति आईसीयू में भी मंदिर और भारतीयों के बारे में सोचा करता था) दुनिया में नहीं हैं। जाने से 3 महीने पहले अक्टूबर में मेरे साथ शार्लिट डाउन टाउन की गलियों में व्हीलचेयर और ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर कॉलेज स्ट्रीट पर घूम रहे थे और गांधीजी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर के कोटेशन को किस स्थान पर लिखवाना है, प्लान कर रहे थे। मैं उनसे शार्लिट शहर और उनकी जिंदगी के बारे में जानकारी इकट्ठा कर लौट रही थी और हम हमारी इस शहर के साथ पिछले कई सालों की जीवन यात्रा याद कर रहे थे।

 
अब आइए जानें यहां बसे सम्पूर्ण भारत और भारतीयों के जीवन और उनकी गतिविधियों के बारे में और भोजवानी अंकल की कहानी आगे बढ़ती है। न्यूयॉर्क से एक नवविवाहित जोड़ा शार्लिट जैसे पिछड़े शहर में 1977 में आया। उन्होंने तय किया था कि न्यूयॉर्क जैसे शहर में उन्हें उनका परिवार नहीं बढ़ाना है। गंभीर और मजाकिया दोनों गुणों के स्वामी भोजवानी बहुत दूरदर्शी थे, जो अपने साथ अपने समाज को भी आगे बढ़ाने को सदा तत्पर रहते थे।

 
समाजसेवा उनका परम प्रिय कार्य था। कुछ सालों में कई रिटेल कपड़े की दुकानों के मालिक बन गए और एक रेस्टॉरेंट के मालिक भी, जिसमें हर महीने के एक रविवार को सत्यनारायण की कथा करवाया करते थे। उस समय अंगुलियों पर गिन सकने जितने भारतीय शार्लिट में रहते थे। न कोई मंदिर, न कोई गुरुद्वारा। सबने कहा एक इंडियन क्लब बनाते हैं और जगह खरीद लेते हैं। भोजवानीजी ने सोचकर एक मंदिर बनाने का प्रस्ताव दिया और कहा कि क्लब बनाएंगे तो हमारे बच्चे भारतीय संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों से वंचित रह जाएंगे और उन्होंने हर तरह से आर्थिक मदद का आश्वासन दिया।

 
संगठन की शुरुआत हमेशा यह व्यक्ति की सोच और पहले कदम से होती है। यहां से शार्लिट के हिन्दू सेंटर की नींव पड़ी, जो कि यहां के भारतीयों का धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गढ़ है। वर्तमान में इसका नया निर्माण कार्य चल रहा है। पुराने मंदिर के साथ भव्य व विशाल मंदिर का विस्तार कार्य हो रहा है। शार्लिट में कई सांस्कृतिक गतिविधियां होती हैं। सारे तीज-त्योहार, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, दिवाली, नवदुर्गा उत्सव, गणेश उत्सव, दशहरा, होली, जन्माष्टमी सब बहुत हर्षोल्लास से मनाए जाते हैं। नृत्य, संगीत, आर्ट के कई रंगारंग कार्यक्रम होते हैं। यहां हिन्दी भाषा, गुजराती भाषा, योग, ध्यान व श्लोक की कक्षाएं चलती हैं। बच्चों के लिए क्रॉप स्कूल चलाया जाता है, जो गुरुकुलम शिक्षा पद्धति पर आधारित है जिसमें हिन्दुत्व, गीता, रामायण व महाभारत के बारे में पढ़ाया जाता है। बुजुर्गों को विभिन्न स्थानों की यात्रा करवाई जाती है, हफ्ते में 2 बार बुजुर्ग मंदिर में एक्टिविटीज के लिए मिलते हैं।

 
शार्लिट में हजारों की संख्या में हर जाति, धर्म व प्रांत के भारतीय लोग रहते हैं। 2003 में एक खूबसूरत गुरुद्वारा बना। यहां जैन मंदिर, श्रीनाथजी की हवेली, सांईं बाबा का मंदिर, जैन मंदिर, स्वामिनारायण टेम्पल और त्रिमूर्ति टेम्पल मुख्य हैं। कई गैस स्टेशन, मोटल, रेस्टॉरेंट्स और कपड़े के व्यवसायी भारतीय हैं। स्थानीय भारतीय कम्प्यूटर इंजीनियर, डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, टीचर्स, फाइनेंस जैसे क्षेत्रों में कार्यरत हैं। शार्लिट में भारतीय नृत्य कला की बहुत सारी शिक्षिकाएं हैं, जो भरतनाट्यम, कथक, गरबा, बॉलीवुड, भांगड़ा आदि की शिक्षा देती हैं। शार्लिट में नृत्य के साथ संगीत भी बेहद लोकप्रिय है और भारतीय संगीत भी बहुत से बच्चे सीखते हैं। पारंपरिक चित्रकलाएं जैसे वरली, मधुबनी, गोंड, कमलकारी के कई आर्टिस्ट हैं, जो बच्चों और युवाओं को कला की शिक्षा देते हैं। सभी क्षेत्रों के कलाकार शहर में हो रहीं कला और सांस्कृतिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

 
शार्लिट में कई देसी रेस्टॉरेंट्स हैं जिनमें कई प्रांतों के खासकर पंजाबी, दक्षिणी भारतीय और इंडोचाइनीज व्यंजन परोसे जाते हैं। हर साल शार्लिट में फेस्टिवल ऑफ़ इंडिया का आयोजन होता है। इसमें भारतीय पारंपरिक नृत्य और बॉलीवुड नृत्यों की प्रस्तुति होती है। भारतीय परिधान, आभूषणों, व्यंजनों की दुकानें लगती हैं। भारतीय संस्कृति, पेंटिंग्स, कला की वस्तुओं की प्रदर्शनी लगती है। हजारों लोग भारतीय कला, संस्कृति, खाने और नृत्यों का लुत्फ़ उठाने फेस्टिवल में आते हैं। कई कलाकार इस फेस्टिवल में अपनी सेवाएं देते हैं और स्थानीय लोग इसे बहुत पसंद करते हैं। बोजेंगल्स कोलिसियम में हर साल गरबा होता है और हजारों की संख्‍या में भारतीय और कई श्वेत-अश्वेत भी इसमें मिलकर गरबा करते हैं। इसका आयोजन नवदुर्गा उत्सव में होता है।

 
सन् 2008 में ऐतिहासिक ओल्ड काउंटी कोर्ट भवन के मुख्य प्रांगण में 8 फुट ऊंची ब्रॉन्ज की गांधीजी की प्रतिमा को स्थापित किया गया। पार्क को गांधी पार्क नाम दिया गया। उस प्रतिमा को भोजवानीजी ने भारत से एक बड़े मूर्तिकार से बनवाया और शार्लिट में लगवाया। उनका एक सपना पूरा हुआ और एक बहुत बड़ी उपलब्धि। ऐसे कई सपने और योजनाएं उनके दिमाग में भारतीय समुदाय और सांस्कृतिक धरोहर के लिए चलती रहती थीं। 22 सालों के प्रवास में यह शहर हमारा भी घर बन चुका है। इसकी कहानी के साथ हमारी कहानी भी जुड़ गई, जहां बड़े शहर की सुख-सुविधाओं हैं लेकिन वहां का धुआं, आपाधापी और दौड़भाग नहीं, एक सुकूनभरी संतुलित जीवनशैली है।

 
तो देर किस बात की? आप जब भी शार्लिट आएं किसी बिजनेस ट्रिप पर, सैर-सपाटा करने, काम से, पढ़ाई करने, परिवार-दोस्तों से मिलने थोड़े या लंबे अंतराल के लिए या हमेशा के लिए, जरूर आइए और इसे अपना घर मानिए या अपनों का।


- विभोम स्वर के सौजन्य से

(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

कही-अनकही 23 : हर एक 'फ्रेंड' ज़रूरी होता है!