ग्रीष्म ऋतु पर कविता (भाग 1)

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- हरनारायण शुक्ला, मिनियापोलिस, USA
 
ग्रीष्म ऋतु है कितनी अच्छी, 
लंबी छुट्टी लाती है,
पढ़ने लिखने होमवर्क से, 
राहत हमें दिलाती है। 
 
दिन भर चाहे खेलें कूदें,
या कर लें सैर सपाटे,
आमरस शरबत पीते रहते, 
शाम को कुल्फी खाते। 
 
नाना-नानी के घर जाते,
लाड़-प्यार से रहते,
मेवा मिश्री, दूध मलाई,
की फरमाइश करते। 
 
पचास सेल्सियस तापमान से,
घबराने की बात नहीं,
बरगद की छाया में बैठो,
या पोखर से निकलो ही नहीं।   
 
ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से ही,
मानसून है खिंचकर आता,
साथ में आती वर्षा ऋतु भी,
भारतवर्ष हरा भरा हो जाता।

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