कविता : तिरंगे से बातचीत

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- रेखा मैत्र
 

 
 
मिली थीं क्या तुम तिरंगे से?
कहा था क्या तुमने
मेरा सलाम उससे
जवाब में जरूर उसने
अपना हाथ हिलाया होगा
आजादी का परचम
हवाओं में लहराया होगा!
 
एक और संदेश देना था उसे
लज्जा से नहीं बताया तुम्हें
मेरा ये वादा था उससे
कि विश्वाकाश में उसे
सबसे ऊपर फहराना है!
 
आज अड़सठ साल का झंडा हुआ
उतने ऊपर पहुंच नहीं पाया
जब भी ये विचार आए
कि कहां हम चूक गए
तब खाली नेताओं के
गिरे हुए चरित्र पर
ध्यान गया है!
 
अगर कुछ चरित्रवान नेता
हमारे झंडे को मजबूती से उठाएं
तो हम सब इसकी सत्तरवीं वर्षगांठ
बड़ी धूमधाम से मनाएं
और आजादी के यज्ञ की
समिधा बने सिपाही
स्वर्ग से फूल बरसाएं। 
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