- रचना श्रीवास्तव लखनऊ में जन्म लिखने की प्रेरणा बाबा एवं माता-पिता से। लेखन के अलावा अभिनय एवं संगीत सुनने में भी रुचि। डैलस में बहुत-सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया। मंच संचालन में निपुण हैं। अभिनय में अनेक पुरस्कार और स्वर्ण पदक मिला। वाद-विवाद प्रतियोगिता में पुरस्कार, लोक संगीत और नृत्य में पुरस्कार, रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस) रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ. नेटजाल की तमाम पत्रिकाओं में आलेख, कहानियाँ, कवितायें प्रकाशित ।
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अगर बापू धरती पे आते हल देख यहाँ का बहुत पछताते झूठ का है ताना-बाना यहाँ सच का कहाँ है ठिकाना यहाँ सच्चाई की मौत पे वो भी तो आँसू बहाते अगर बापू धरती पे आते
लुट गए कितनों के सुहाग यहाँ हो गए कितने बेघर अनाथ यहाँ अहिंसा की उठती अर्थी पे कुछ फूल वो भी तो चढ़ाते अगर बापू धरती पे आते
माली स्वयं उजाड़ रहा है चमन अपना चिराग ख़ुद जला रहा है घर अपना क्या दिलाई थी इसीलिए आजादी ये सोचने पे विवश हो जाते अगर बापू धरती पे आते
चाहतें किताबों में सिमट गईं इंसानियत मात्र बातों में रह गई देख हालत इन्सानों की प्राण उनके भी अकुलाते अगर बापू धरती पे आते
धर्म भाषा जाति में बँटते देख के भी हम ने क्यों न आवाज उठाई इस बात के लिए क्या वो हमें माफ़ कर पाते अगर बापू धरती पे आते।