अपनापन

- सुदर्शन प्रियदर्शिनी

Webdunia
GN

बहुत-सी यादें हैं
तुम्हारे आंगन की
मेरी छनकती
पायल की
रुनझुन-तुम्हें
सुहाती थी
जैसे बेटी थी
मैं तेरे घर की।

लुटाते थे
आंखों से
सारे बाग-बगीचे
की संपदा
तुम मुझ पर
मैं कौतुक और भौंचक
देखी करती।

कैसे होते हैं
रिश्ते-नाते
या संबंध
जो अपनों की
बिलकुल
अपनों की
देहरियां
लांघकर भी
बना लेते
हैं घर और
ठिकाना।

दूसरों के घर
और पता
नहीं चलता
कौन-सा घर-
कौन-सा आंगन-
और उस एक
शब्द में
घुल-मिल
जाती है
सारी वसुधा
जिसे कहते
हैं- अपनापन।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

क्या नवजात को पीलिया होने पर धूप में लिटाना है सही, जानिए ये फैक्ट है या मिथ

ऑफिस जाने से पहले इन 5 मिनट की स्ट्रेचिंग से मिलेगी दिन भर के लिए भरपूर एनर्जी, आप भी करके देखिये

2025 में क्या है विमेंस डे की थीम? जानिए 8 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है ये दिन?

क्या डायबिटीज के पेशेंट खा सकते हैं केला, ये पढ़े बिना आपकी जानकारी है अधूरी

जान लीजिए बीमार बच्चों को खिलाने-पिलाने से जुड़े मिथक की सच्चाई

सभी देखें

नवीनतम

रात को सोने से पहले खाएं ये हरा फल, सेहत को मिलेंगे चौकाने वाले फायदे

ये तीन ड्राई फ्रूट्स बनाएंगे आपकी इम्यूनिटी को हर मौसम में मजबूत, पूरे साल करना चाहिए सेवन

फिटनेस गोल्स को पूरा करने में बार-बार हो रहे हैं फेल? इन टिप्स से पाएं सफलता

इस सुन्दर संदेशों से अपने जीवन की खास महिलाओं का दिन बनाएं और भी खास, विशेष अंदाज में कहें हेप्पी विमन्स डे

महिला दिवस पर दिखेंगीं सबसे अलग और फ्रेश, लगाएं मसूर दाल से बना ये खास फेस पैक