आसमाँ को जब...!

- गौतम राजरिशी

Webdunia
GN

परों का जब कभी तूफान से यूँ सामना निकला
कि कितने ही परिंदों का हवा में बचपन निकला

न जाने कह दिया क्या धूप से दरिया ने इतरा के
कि पानी का हर इक कतरा उजाले में छना निकला

जरा खिड़की से छन कर चाँद जब कमरे तलक पहुँचा
तेरी यादों की दीवारों पे इक जंगल घना निकला

गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
मिली चौड़ी सड़क जब, अजनबी वो क्यूँ बना निकला

दिखे जो चंद अपने ही खड़े दुश्मन के खेमे में
नसों में दौड़ते-फिरते लहू का खौलना निकला

मसीहा-सा बना फिरता था जो इक हुक्मराँ अपना
मुखौटा जब हटा, वो कातिलों का सरगना निकला

चिता की अग्नि से बढ़कर छुआ था आसमाँ को जब
धुँयें ने दी सलामी, पर तिरंगा अमनमा निकला।
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

गर्मियों में आइस एप्पल खाने के फायदे, जानें क्यों कहलाता है सुपरफ्रूट

ग्रीन टी में चीनी डालना चाहिए या नहीं? जानिए क्या है सुझाव

जंग पर लिखे गए दमदार शेर और शायरी, जरूर पढ़ें

बाजार से बढ़िया और स्वादिष्ट आइसक्रीम घर पर कैसे बनाएं, पढ़ें मजेदार रेसिपी

शहीद किस भाषा का शब्द है, जानिए हिंदी में शहीद को क्या कहते हैं

सभी देखें

नवीनतम

आज का चटपटा चुटकुला : तुम कमाते क्या हो?

चाणक्य की इन बातों से जानें जीने की कला, अगर सीख ली तो कदमों में होगी दुनिया

40 के बाद भी 25 जैसा ग्लो चाहिए? ये आसान योगासन करेंगे आपकी मदद

प्रेम कविता : तुम्हारा जाना

क्या महिलाओं को भी होता है स्वप्नदोष, क्या कहते हैं डॉक्टर्स?