कुछ यूँ हीं...

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- अजंता शर्मा
कम्प्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर, साहित्य के अतिरिक्त गायन व चित्रकला में रुचि। कविताएँ देश-विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, जालघरों और रेडियो स्टेशन में प्रकाशित। संप्रति-प्रबंधक (इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी)

GN
सोज़-साज़ बिन कैसे तराने सुनते
आमों के मंजर, कोयल के गाने सुनते
न टूटता दम, न दिल, न यकीं, न अज़ाँ
चटकत‍ी कली की खिलखिलाहट ग़र वीराने सुनते
हारकर छोड़ ही दी तेरे आने की उम्मीद
आखिर कब तलक तुम्हारे बहाने सुनते
क़ैस की जिन्दगी थी लैला की धड़कन
पत्थर की बुतों में अब क्या दीवाने सुनते
मेरी फ़ुगाँ तो मेरे अश्कों में निहाँ थी
अनकही फ़रियाद को कैसे ज़माने सुनते
बयान-ए-हक़ीक़त भी कब हसीं होता है
और आप भी कब तक मेरे अफ़साने सुनते।

साभार- गर्भनाल

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