क्या हुआ?

डॉ. सुधा ओम ढींगरा

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रौशनी की धरती पर
चलते हुए
अँधेरों से
पिघलने लगी
और
दर्द कर बस्तियों
से दोस्ती कर
आँचल कागज़ के फूलों
से भरने लगी।

नफरत भरे दिलों
के अंगारों की
जलन से
बचने लगी
और
वर्षों से भरे
दिल के छालों को
न छेड़ दे कोई,
उन्हें बचाने लगी।

समय के
थपेड़ों ने
सर
झुका दिया
और
भीड़ ने
माना कि
याचना
करने लगी।

साभार- गर्भनाल

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