जन्म बनारस में। सागर विवि से हिन्दी साहित्य में एमए किया। फिलहाल अमेरिका में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी साहित्यिक संस्था 'उन्मेष' के साथ जुड़ी हैं। प्रकाशित कविता संग्रह : पलों की परछाइयाँ, मन की गली, उस पार, रिश्तों की पगडंडियाँ, मुट्ठी पर धूप, बेशर्म के फूल। अधिकांश कविताएँ बांग्ला व अँगरेजी में अनुवादित ।
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बचपन में सुना था गंगा में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं!
बात की सच्चाई जानने के ख़याल से उसी कच्ची उम्र में गुड़ की भेली रसोई से चुराकर खाई और गंगा में डुबकी लगाई सामने माँ को बेंत के साथ खड़ा पाया!
पाप-शाप तो कुछ न धुला चोरी की सज़ा में अच्छी धुलाई हुई!
आज गंगा तो आस-पास नहीं है पाप धोने का बचकाना ख़याल भी अब दिमाग में नहीं है इस देश की गंगा, मिसिसिपी के तट पर अपने हाथ-पाँव धोए हैं