जब तुम मुझ पर बरसे मधु श्रोत से मैं चाशनी-सी ठहर गई हो गई तार-तार अमिय लेप में उतर गई।
तुम बूँद-बूँद मेरे चारों ओर स्वर्णिम करते मेरा कोर कोर हिय सार बन दिख रहा इन नैनों में तुम मिठास बन उतरे घुल गए मेरे चैनों में।
तुम छा रहे तुम छू रहे, मन को मेरे कोमल रसधार बन धीमे-धीमे भिगो रहे मैं मंद मंद आसक्त बन तुम्हारे बाहुपाश में जड़ रही तुममें उतर रही सँवर रही निखर रही।