हे बादल!

Webdunia
- अजंता शर्मा
GN

कम्प्यूटर साइंस में स्नातकोत्तर। साहित्य के अलावा गायन, चित्रकला में रुचि, कविताएँ देश-विदेश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाअओं, जालघरों और रेडियो स्टेशन में प्रकाशित-प्रसारित। संप्रति- प्रबंधक (इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी)

अब मेरे आँचल में तृणों की लहराई डार नहीं
न है तुम्हारे स्वागत के लिए
ढेरों मुस्काते रंग
मेरा जिस्म।
ईंट और पत्थरों के बोझ तले
दबा है

GN
उस तमतमाए सूरज से भागकर
जो उबलते इंसान इन छतों के नीचे पका करते हैं
तुम नहीं जानते
कि एक तुम ही हो
जिसके मृदु फुहार की आस रहती है इन्हें
बादल तुम बरस जाना
अपनी ही बनाई कंक्रीट की दुनिया से ऊबे लोग
अपनी शर्म धोने अब कहाँ जाएँ?

आईना
काश!
के तुम आईना ही बन जाते
मैं
ठिठकी खड़ी रहती
और
तुम मेरा चेहरा पढ़ पाते
मेरे एक-एक भाव से होती रहती मैं जाहिर
तुम
अपलक निहारते मुझे
और
बाँचते मेरे माथे की लकीर
मेरे हाथ बढ़ाए बिना
तुम
मुझे एकाकार कर लेते
हर प्रश्न का उत्तर
तुम्हारी आँखों में
मेरा चेहरा होता
मेरे शब्द
बिन वाणी के नहीं मरते।

- गर्भनाल से साभार
Show comments

रात में Wi Fi राउटर बंद करने से क्या होता है? क्या हेल्थ पर पड़ता है कोई असर?

चाणक्य की इन बातों से जानें जीने की कला, अगर सीख ली तो कदमों में होगी दुनिया

क्या महिलाओं को भी होता है स्वप्नदोष, क्या कहते हैं डॉक्टर्स?

1 मिनट से लेकर 1 घंटे तक चलने के हैरान कर देने वाले फायदे, जानिए हर मिनट के साथ आपके शरीर में क्या बदलता है?

ऑपरेशन सिंदूर की कर्नल सोफिया कुरैशी का रानी लक्ष्मीबाई से क्या है कनेक्शन

पार्टनर के लिए 20 बेहतरीन रोमांटिक गुड मॉर्निंग लव शायरी और कोट्स

भारत में कैसे आता है मॉनसून? समझिए बारिश का पूरा विज्ञान

ओवरथिंकिंग को कम कर सकते हैं ये फूड्स, जानें फायदे

हर आदमी को पता होनी चाहिए दिल के दौरे की ये शुरुआती निशानियां

बरखा की बूंदों में भीगी ये शायरी पढ़ कर दिल हो जाएगा तरोताजा