ज़हर

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- डॉ. परमजीत ओबराय

GN
4 दिसंबर 1966 को जन्म। दिल्ली यूनिवर्सिटी से एम.ए. और पी.एच-डी. की डिग्रियाँ हासिल कीं। 16 सालों तक विभिन्न स्कूलों
में अध्यापन करने के बाद वर्तमान में बहरीन में पढ़ाती हैं ।

घृणारूपी ज़हर
फैलता जा रहा
मानव में दिन-प्रतिदिन
उगलकर ज़हर स्वयं स्वस्थ नहीं
होना चाह रहा है मानव।

स्वार्थ की गंध भरी है उसमें
ठूँस-ठूँस कर
परमार्थ तो रह गया यूँ
धरा का धरा।

किंचित कर मन चिंतन
कैसे सफल होगा तेरा जीवन
ले शरण उस ईश की नित्य
जो धो सके पाप तेरे
अद्वितीय।

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