प्रतीक्षारत

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- दीपक गुप्ता
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15 मार्च 1972 को दिल्ली में जन्म। दिल्ली विवि से कला स्नातक। विभिन्न प‍त्र-पत्रिकाओं में रच नाएँ प्रकाशित। कविता संग्रह- सीपियों में बंद मोती, हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा साहित्यिक कृति सम्मान से पुरस्कृत। नेपाल, ओमान, मस्कट एवं सलालाह की यात्राएँ ।

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मौसम के मस्तक पर मैंने नाम तुम्हारे लिख दी पाती
और प्रतीक्षारत उत्तर में बादल का मन झाँक रहा हूँ

अक्सर मुझसे बतियाता है
मस्त हवाओं का हरकारा
आते-जाते बतला जाता
क्या है प्रियतम हाल तुम्हारा

झंझाओं को झेल रही है नित दीपक की जलती बाती
कितना जीवन शेष अभी है मन ही मन मैं आँक रहा हूँ

तन की तन से दूरी है पर
मन का है मन से चिर बंधन
मेरी साँसों में सुरभित है
तेरी साँसों का ही चंद न

अब तो सावन की ऋतु भी मुझको बिलकुल नहीं सुहाती
नीर लिए नयनों के नभ में कल्पित सपने टाँक रहा हूँ।

लिखूँगा जीवनभर
गीत सभी मैं नाम तुम्हारे मीत लिखूँगा जीवनभर
हार मुझे स्वीकार तुम्हारी जीत लिखूँगा जीवनभ र

तुम आई तो मेरी श्वासों को नूतन उल्लास मिला
मेरे सूनेपन को जैसे एक नया मधुमास मिला
तुम आई नव आस किरण बन मुझको भी विश्वास मिला
साथ तुम्हारा पाकर अपनेपन का इक अहसास मिला

चिर मिलन का स्वप्न सँजोए भावों का संसार लिए
मन के मनकों पर मैं पावन प्रीत लिखूँगा जीवनभर
मैं तम में रह लूँगा, तुमको जीवनभर उजियार मिले
मैं दु:ख में बह लूँगा तुमको खुशियों का संसार मिल े

स‍ुधियों के खारे सागर में, मैं अधरों पर प्यास लिए
मन की लहरों पर मधुरिम संगीत लिखूँगा जीवनभर ।

- गर्भनाल से साभार
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