पहले भी ऋषियों के हिमालय जाकर तपस्या करने की कहानियां हमने बड़ों से सुनी थी
जो घर-संसार त्यागकर अपने आध्यात्मिक ज्ञान-धन को पाने के लिए हिमालय की कंदराओं में जा बसते थे
हम भी तो आज जहरातेखलीज की इन गुफाओं में उन्हीं साधुओं की तरह साधना में लीन हैं घर-संसार त्यागकर
मौनव्रती आत्मलीन हैं हम तुम्हारे नाम की माला भी फेरने की आदत है हमें जो हमारे गृहस्थ जीवन की देन है सोते-जागते दिनारों की मीनारों को देखते रहते हैं, नापते रहते हैं उनकी ऊंचाइयों को, क्या हिमालय की चोटियों से भी ऊंचा चढ़ पाएंगे हम?