मुझे कुछ कहना था
पर जता ही न पाया
जिन शब्दों को चुना
वे लगे मुझे व्यर्थ
जीवन ऐसे भेद हैं
घनिष्ठ व अज्ञेय जैसे माया
समझने में जिन्हें
मैं रहूंगा सदा असमर्थ
जो दिशाएं मुझे खींचती थीं
मैं अधिकतर कतराया
जिस दिशा में चला
वह दिशा थी भ्रमों से भरी
हर्षोल्लास का हर क्षण
करुणा को समाया
जैसे मांगी है
चीज जो नहीं है मेरी
मेरा स्वप्न पुराना कचोट लेके
फिर रात को आया
उसके टूटे टुकड़े
आंसू बनकर नैनों से बहे
अपनी पीड़ा को मैंने रात-रात
दारू पीकर घटाया
जिस डगर पे चला मैं
कोई भी न चले
लेकिन जीवन की यात्रा में
साथ तू रही, जैसे साया
तेज तूफान के अंधकार में भी
जाती रही, न रुकी
मुझे प्रेम ने हमेशा
अपार व असीम सुख दिलाया
दुर्दशा भी कभी
मेरे प्रेम को मिटा न सक ी।