कटी टांग के बाद भी जीत का जज्बा

- सीमान्त सुवीर

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भारत की मशहूर नृत्यांगना और अभिनेत्री सुधा चन्द्रन का जिक्र आते ही फिल्म 'नाचे मयूरी' की वह लड़की दिमाग में घर कर जाती है जो कटी टांग के बावजूद 'जयपुर फुट' के सहारे कुशल नृत्य करते हुए सिनेमा हॉल में बैठे लोगों को तालियां पीटने पर मजबूर कर देती थी।

19 साल की उम्र में एक दुर्घटना में सुधा का एक पैर कट गया था, लेकिन नकली पैर के सहारे उन्होंने नृत्य करना प्रारंभ किया और लगन, मेहनत के बूते पर ऊंचा मुकाम हासिल किया। सुधा चन्द्रन का नाम आज फिल्म उद्योग के साथ-साथ छोटे परदे पर भी बेहद आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।

सुधा की तरह ओलिम्पिक खेलों में तीन सोने के तमगे हासिल करने वाली अमेरिकी अश्वेत एथलीट विल्मा रूडोल्फ की मिसाल आज तक दी जाती है। 20 साल की उम्र में विल्मा ने 52 सालों के इंतजार के बाद ओलिम्पिक की मेजबानी कर रहे ओलिम्पिक खेलों में जो चमत्कारी प्रदर्शन किया था, उसे भला कभी भुलाया जा सकता है?

19 भाई-बहनों में 17वें नम्बर की विल्मा जब 4 बरस की थीं, तब उन्हें एक ऐसी बीमारी हो गई कि वे चल-फिर भी नहीं सकती थीं। विल्मा ने अपनी ‍जिन्दगी के 7 साल बिस्तर पर काटे। वे 11 साल की उम्र तक अपने पैरों पर खड़ी भी नहीं रह पाती थीं, लेकिन मां ने हिम्मत नहीं हारी। वे अपनी 17वें नंबर की बेटी को लिए नीम-हकीमों के पास घूमती रहीं। चमत्कार देखिए कि धीरे-धीरे पैरों में हरकत शुरू हुई और विल्मा अपने पैरों पर खड़ी हुईं।

जब चलना सीखा तो फिर दौड़ने में कोई दिक्कत नहीं थी। बिना किसी कोच के सहारे विल्मा का एथलेटिक्स जीवन शुरू हुआ। 1960 में रोम ओलिम्पिक में वे अमेरिकी टीम के साथ गईं और उन्होंने तीन स्वर्ण पदक अपने गले में पहने। विल्मा ने 100 और 200 मीटर का स्वर्ण पदक जीतने के बाद 400 मीटर रिले में अमेरिकी टीम के लिए स्वर्ण पदक जीता।

रोम के ओलिम्पिक खेलों का प्रसारण 100 से ज्यादा टीवी चैनलों पर किया गया और रिकॉर्डेड प्रसारण 18 यूरोपीय देशों में किया गया। इस प्रसारण के बाद ही रोम एक पर्यटक शहर के रूप में विख्यात हुआ। इसी के साथ विल्मा को भरपूर ख्याति भी मिली।

विल्मा की तरह ही एक और मामला सामने आया। एनडीटीवी की न्यूज में एक विकलांग तैराक की दास्तान पेश की गई, जो नकली पैर के सहारे बीजिंग ओलिम्पिक खेलों में उतरने जा रही हैं। दक्षिण अफ्रीका की नताली ने 6 साल की उम्र से ओलिम्पिक में भाग लेने का ख्वाब देखा था। 2001 में एक सड़क दुर्घटना में नताली का बायाँ पैर कट गया।

सर्जरी के 6 माह बाद नताली ने तैराकी का अभ्यास शुरू किया। उनकी हिम्मत रंग लाई और उन्होंने पैरालिम्पिक में हिस्सा लिया। 2002 के राष्ट्रमंडलीय खेल में वे 800 मीटर फ्रीस्टाइल में तीसरा स्थान पाने की वजह से बीजिंग ओलिम्पिक के लिए क्वालिफाई कर गईं। बीजिंग में नताली 10 हजार मीटर की तैराकी स्पर्धा में हिस्सा लेंगी।

कटे पैर किसी भी इनसान के लिए थोड़ी बाधा जरूर बन सकते हैं, लेकिन मुसीबत नहीं। यदि दृढ़ इच्छाशक्ति है तो कटी टांग से ओलिम्पिक का स्वर्ण पदक भी हासिल किया जा सकता है।

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