पदक का रंग जरूर बदलूंगी- साइना

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लंदन ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर स्वदेश लौटीं देश की शीर्ष बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने भव्य स्वागत के बीच मंगलवार को यहां कहा कि ओलिंपिक पदक जीतने से उनका आत्मविश्वास बढ़ गया है और इस कारण वे आगामी प्रतियोगिताओं में ज्यादा सहज होकर खेल सकेंगी।

कोच पुलेला गोपीचंद और पिता हरवीर सिंह के साथ यहां मौजूद साइना ने संवाददाताओं से कहा कि यह तो अभी शुरुआत है। मुझे देश के लिए अभी बहुत से पदक जीतने हैं और भरोसा है कि मैं पदक का रंग बदलने में जरूर कामयाब रहूंगी।

विश्व की नंबर पांच खिलाड़ी साइना ने कहा कि मैं इस कामयाबी और समर्थन के लिए अपने माता-पिता तथा गोपी सर का धन्यवाद करती हूं। मैंने इसके लिए काफी मेहनत की है और सबकी दुआओं से कामयाब हुई हूं। साइना लंदन से ब्रिटिश एयरवेज की उड़ान से दिल्ली पहुंची थीं और वहां से सीधे हैदराबाद आ गईं।

हवाई अड्डे पर उनके स्वागत के लिए भारी भीड उमड़ी थी, जहां से उन्हें और गोपीचंद को रथ की तरह सजाई गई बस की छत पर गोपीचंद अकादमी तक लाया गया। पदक मिलने से उत्साहित साइना ने कहा कि ओलिंपिक बड़ी चुनौती होती है। हम सबने इसके लिए काफी तैयारी की और अच्छी कोशिश की।

हमने कोई खराब प्रदर्शन नहीं किया। मैंने अपनी पूरी ताकत झोंकी। ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा ने भी अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन दुर्भाग्य से जीत नहीं मिल पाई। उन्होंने कहा कि अभी बहुत सफर बाकी है। उम्मीद है कि मैं अगला ओलिंपिक खेल पाऊंगी और तब शायद रजत या स्वर्ण जीत सकूं।

इस बार दुनिया की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के खिलाफ खेलने से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है। साइना ने कहा कि मैं पिछले वर्ष रैंकिंग में नंबर तीन तक गई थी। यह अच्छा था। अब ओलिंपिक में नंबर तीन पर रही हूं। इस सिलसिले को आगे बढ़ाना है। इसके लिए पूरी कोशिश करूंगी।

यह आगे बढ़ने का और देश के लिए ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने का समय है। ओलिंपिक में भारत के लिए पहली बार बैडमिंटन का पदक जीतने वाली कांस्य विजेता ने कहा कि हर कोई हमेशा ही स्वर्ण जीतना चाहता है, लेकिन सबके लिए यह संभव नहीं। मैं पोडियम तक पहुंच कर खुश हूं। यह एक बड़ी उपलब्धि है।

कांस्य पदक मुकाबले के बारे में पूछे जाने पर साइना ने कहा कि विपक्षी खिलाड़ी के चोटिल होने का मुझे गहरा दु:ख है लेकिन पदक तो पदक है। मैं मैच में अच्छी स्थिति में आ रही थी और जीतने के लिए तैयार थी। मैं यह मैच खेलकर जीतना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

मैं नौ वर्ष की उम्र से ही ओलिंपिक पदक जीतना चाहती थी। अब यह सपना साकार हो गया है। उस मैच से पहले मैं नर्वस थी लेकिन गोपी सर ने कहा कि उसे भूल जाओ और अगले मैच पर ध्यान लगाओ। तुम्हें अगला मैच जीतना है। धीरे-धीरे मेरी स्थिति सामान्य होने लगी। मैंने अच्छी रणनीति बनाई थी और मैच आगे बढ़ता तो इसका असर भी दिखता।

साइना ने कहा कि खेल में अक्सर ऐसी स्थितियां आती हैं। हमें इनका सामना करना ही होता है। ओलिंपिक में भी ऐसा रहा लेकिन मैं बस खेलती रही। वास्तव में हमारे ऊपर दबाव बहुत ज्यादा था लेकिन मैं इससे ज्यादा परेशान नहीं हुई बल्कि इसे अन्य मैचों की ही तरह लिया।

सेमीफाइनल मैच के बारे में बात करते हुए साइना ने कहा कि उस दिन मेरी रणनीति विफल हो गई। कहीं न कहीं आपसे चूक होती है। फिर विपक्षी खिलाड़ी भी दमदार थी और अच्छा खेल रही थी। विश्व में नंबर वन होने का तो मतलब ही है कि आप ज्यादा अच्छी हैं।

इसमें मेरे लिए आश्चर्य की कोई बात नहीं थी। गोपीचंद ने साइना का धन्यवाद करते हुए कहा कि एक ओलिंपिक पदक के बिना मेरी जिंदगी अधूरी थी। साइना ने यह कमी पूरी कर दी है। मैं तहेदिल से इसका शुक्रिया अदा करता हूं। साइना ने मुझसे वादा किया था कि वे पदक जीतेंगी।

उन्होंने यह वादा भी पूरा किया। उन्होंने पिछले तीन माह से साइना ने कड़ी मेहनत की। यह उसी का नतीजा है। ओलिंपिक का पदक जीतना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। मुझे खुशी है कि साइना ने यह कर दिखाया है।

साइना के पिता ने कहा कि यह सफर कतई आसान नहीं था लेकिन कहावत है कि खोजने से भगवान भी मिलते हैं। साइना ने पदक को भगवान मानकर इसे पाने की पूरी तैयारी की और सफल भी हुई। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है। मुझे भरोसा है कि यह भविष्य में और भी ओलिंपिक पदक जीतेगी और पदक का रंग भी बदलेगा। (वार्ता)

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