स्त्री अपने को नीचे रखती है। लोग गलत सोचते हैं कि पुरुषों ने स्त्रियों को दासी बना लिया। नहीं, स्त्री दासी बनने की कला है। मगर तुम्हें पता नहीं, उसकी कला बड़ी महत्वपूर्ण है। और लाओत्से उसी कला का उद्घाटन कर रहा है। कोई पुरुष किसी स्त्री को दासी नहीं बनाता। दुनिया के किसी भी कोने में जब भी कोई स्त्री किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है,तत्क्षण अपने को दासी बना लेती है, क्योंकि दासी होना ही गहरी मालकियत है। वह जीवन का राज समझती है।
स्त्री अपने को नीचे रखती है, चरणों में रखती है। और तुमने देखा है कि जब भी कोई स्त्री अपने को तुम्हारे चरणों में रख देती है, तब अचानक तुम्हारे सिर पर ताज की तरह बैठ जाती है। रखती चरणों में है, पहुंच जाती है बहुत गहरे, बहुत ऊपर। तुम चौबीस घंटे उसी का चिंतन करने लगते हो। छोड़ देती है अपने को तुम्हारे चरणों में, तुम्हारी छाया बन जाती है। और तुम्हें पता भी नहीं चलता कि छाया तुम्हें चलाने लगती है, छाया के इशारे से तुम चलने लगते हो।
स्त्री कभी यह भी नहीं कहती सीधा कि यह करो, लेकिन वह जो चाहती है करवा लेती है। वह कभी नहीं कहती कि यह ऐसा ही हो, लेकिन वह जैसा चाहती है वैसा करवा लेती है।
लाओत्से यह कह रहा है कि उसकी शक्ति बड़ी है। और उसकी शक्ति क्या है? क्योंकि वह दासी है। शक्ति उसकी यह है कि वह छाया हो गई है। बड़े से बड़े शक्तिशाली पुरुष स्त्री के प्रेम में पड़ जाते हैं, और एकदम अशक्त हो जाते हैं।
सौजन्य : शुभतारिका