आतंकवाद का एकमात्र निदान : अवचेतन की सफाई

11 दिसंबर जन्म दिवस पर विशेष

Webdunia
- माँ अमृत साधन ा
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ओशो का निदान है कि जब तक एक-एक व्यक्ति के अवचेतन मन में छिपी हुई हिंसा को निकाल बाहर नहीं किया जाता तब तक दुनिया से आतंकवाद मिटनेवाला नहीं। क्योंकि आतंकवाद न तो बंदूकों में है न बमों में, वह प्रत्येक आदमी के मन में है, लेकिन हम कभी अपने भीतर झाँककर देखते नहीं। जिस तरह शरीर की सफाई की जाती है उसी तरह मन की सफाई करनी अत्यंत आवश्यक है। उसीके लिए ओशो ने यह वैज्ञानिक ध्यान विधि बनाई है। आतंकवाद का हल करने के लिए आज हर इन्सान बाहर देख रहा है, लेकिन इसका समाधान है अंदर, प्रत्येक के गहरे तहखाने में।

सक्रिय ध्यान का प्रयोग एक अद्भुत थैरेपी है। शुरू में तो वह नितांत पागलपन जैसा लगता है। लेकिन यह सजग पागलपन है और उसके पीछे एक प्रयोजन है। यह ऐसा पागलपन है जिसमें एक विधि है। इसे चेतन रूप से चुना गया है। आप स्वयं चाह कर पागल नहीं हो सकते। पागलपन जब आप पर हावी हो जाता है केवल तभी आप पागल हो सकते हैं। जब आप चाह कर पागल होते हो तो वह बिलकुल भिन्न बात हो जाती है। आप पूरी तरह नियंत्रण में रहते हैं।

अराजकपूर्ण श्वास और मन के ढाँचे को तोड़ना:
पहले दस मिनट तक बिना किसी व्यवस्था के तेज व अराजक श्वास-प्रश्वास लेना है। यह कोई योगाभ्यास नहीं है। यह पूरी तरह अराजकपूर्ण है। क्यों? क्योंकि यदि आप किसी भी तरह की व्यवस्था बिठाएँ और लय बाँधें तो मन उसे नियंत्रण में ले लेगा। मन किसी भी व्यवस्था को नियंत्रित कर सकता है। मन बड़ा व्यवस्थापक है। तो यहाँ हम व्यवस्थाओं को, मन की व्यवस्थाओं को तोड़ रहे हैं। तो अराजक श्वास लें, पागल की तरह-तेज। जितनी श्वास ले सकते हैं, भीतर लें और फिर उसे बाहर फेंक दें-तेज, बिना किसी लय के ताकि मन चौंक जाए! और श्वास मन को चौंकाने का बहुत बड़ा उपाय है।

इस बात का खयाल रखें कि हर भाव के साथ श्वास बदल जाती है। और हर भाव की अपनी श्वास व्यवस्था होती है। जब आप प्रेम में होते हो, तो श्वास शिथिल होती है; जब आप क्रोध में होते हो, तो श्वास कभी भी शिथिल नहीं हो सकती। जब आप किसी से घृणा करते हो, तो श्वास अलग होती है; जब आप करुणा से भरे होते हो, तो श्वास अलग होती है। अराजक श्वास का किसी भाव से कुछ लेना-देना नहीं है। तो इसके द्वारा आप भावों के, मन की व्यवस्था के बाहर चले जाते है। और मन रुक जाता है; आगे चल नहीं सकता। तो दस मिनट के लिए तेज और उन्मत्त श्वास।

ओशो कहते हैं, डाइनैमिक ध्यान की मेरी पद्धति श्वास के प्रयोग से शुरू होती है क्योंकि श्वास की गहरी जड़ें तुम्हारे अंतस केंद्र में हैं। शायद तुमने इस बात पर ध्यान न दिया हो, लेकिन यदि तुम अपनी श्वास को बदलते हो, तो तुम कई चीजें भीतर बदल सकते हो। यदि तुम सावधानी से अपनी श्वास का निरीक्षण करो तो तुम पाओगे कि जब तुम क्रोधित हो तब तुम्हारे श्वास की एक खास लय है। जब तुम प्रेम में होते हो तब एक बिलकुल ही भिन्न लय तुम्हारे श्वास की होती है। जब तुम विश्राम में होते हो तब भिन्न ढंग से श्वास लेते हो; जब तुम तनाव में होते हो तब भिन्न ढंग से श्वास लेते हो।

विश्राम की अवस्था में चलने वाली श्वास की लय के साथ-साथ तुम क्रोधित नहीं हो सकते। यह असंभव है। इसलिए मैं श्वास से शुरू करता हूँ और इस ध्यान विधि के पहले चरण में दस मिनट के अराजक श्वास-प्रश्वास के लिए कहता हूँ। अराजक श्वास से मेरा मतलब हैगहरी, तेज और प्रबल श्वास-प्रश्वास बिना किसी लयबद्धता के-बस श्वास भीतर खींचना और बाहर फेंकना, भीतर खींचना और बाहर फेंकना-अधिक से अधिक गहरी, प्रबल और सप्राण। भीतर खींचें बाहर फेंके।

यह अस्तव्यस्त श्वास-प्रश्वास तुम्हारे भीतर की दमन की व्यवस्था में उथल-पुथल पैदा करने के लिए है। जो भी तुम हो वह तुम एक खास प्रकार के श्वसन के ढाँचे के कारण हो। एक बच्च खास ढंग से श्वास लेता है। यदि तुम काम-वासना से भयभीत हो तो तुम एक खास ढंग से श्वास लोगे। तब तुम गहराई से श्वास नहीं ले सकते क्योंकि प्रत्येक गहरी श्वास तुम्हारे काम-केंद्र पर चोट करती है। यदि तुम भयभीत हो तो तुम गहरी श्वास नहीं ले सकते। भय में श्वास उथली हो जाती है। यह अराजक श्वास-प्रश्वास तुम्हारे अतीत के समस्त ढाँचों को तोड़ने के लिए है। तुमने अपने आप को जैसा निर्मित किया है, उसे यह अराजक श्वास नष्ट कर देने वाली है। यह अस्तव्यस्त श्वास-प्रश्वास तुम्हारे भीतर अराजकता पैदा करती है क्योंकि बिना अराजकता पैदा हुए तुम अपने दमित मनोवेगों और भावावेगों को विसर्जित नहीं कर सकते। और वे भावावेग अब तो शरीर तक में फैल गए हैं।

तुम शरीर और मन ऐसे दो नहीं हो; तुम देह-मन, मनो-शारीरिक हो। तुम एक साथ दोनों हो। इसलिए जो भी तुम्हारे शरीर के साथ किया जाता है वह तुम्हारे मन तक पहुँच जाता है और मन के साथ जो कुछ किया जाता है वह शरीर तक पहुँच जाता है। शरीर और मन एक ही सत्ता के दो छोर हैं।

दस मिनट के लिए किया गया अराजक श्वसन विस्मयकारी है। लेकिन उसे अराजक होना चाहिए। यह कोई प्राणायाम, योग की कोई श्वसन प्रक्रिया नहीं है। यह श्वास-प्रश्वास के माध्यम से मात्र एक अराजकता पैदा करना है। और अनेक कारणों से यह श्वसन अराजकता पैदा करती है।

गहरी और तेज श्वास तुम्हें और अधिक ऑक्सीजन देती है। शरीर में अधिक ऑक्सीजन आने से तुम अधिक जीवंत और आदिम, पशुवत सरल हो जाते हो। पशु जीवंत होते हैं और मनुष्य आधा-मृत आधा-जीवित है। तुम्हें पुन: पशुवत जीवंत और सरल बना देना होगा। केवल तभी कोई उच्च्तर आयाम तुममें विकसित हो सकता है।

रेच न
सक्रिय-ध्यान की इस विधि में दूसरा चरण है रेचन का। इसमें आपको सचेतन रूप से पागल हो जाना है, जो भी आपके मन में आता है जो कुछ भी-उसे स्वयं अभिव्यक्त होने दें, इसमें सहयोग करें, कोई प्रतिरोध नहीं-आवेगों का एक सहज प्रवाह।

यदि चीखना चाहो तो चीखो। उसके साथ सहयोग करो। एक गहरी चीख, एक परिपूर्ण चीख जिसमें आपका पूरा अस्तित्व आबद्ध हो जाता है यह बहुत स्वास्थ्यप्रद है, यह गहन रूप से थेराप्यूटिक है। अनेक बातें, अनेक बीमारियाँ मात्र इस समग्र चीख के साथ विसर्जित हो जाएँगी। यदि चीख परिपूर्ण है तो आपका समग्र अस्तित्व उसमें संलग्र हो जाएगा।

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तो दस मिनट तक चीख कर, चिल्ला कर, रोकर, हंस कर, नाच कर उछल-कूद करसब प्रकार की सनकों से अपने आपको अभिव्यक्त करें। कुछ दिनों में आपको अनुभव में आ जाएगा कि यह क्या होता है। शुरू-शुरू में यह बलपूर्वक, सप्रयास या अभिनय तक भी हो सकता है। क्योंकि हम इतने नकली हो गए हैं कि हम से कुछ भी प्रामाणिक या वास्तविक होना संभव नहीं है।

हम हंसे नहीं हैं, हम रोए नहीं हैं, हम प्रामाणिकता से चीखे भी नहीं हैं। हमारा सब कुछ एक दिखावा, एक मुखौटा मात्र है। इसलिए जब तुम इस विधि का अयास शुरू करते होतो पहले यह बलपूर्वक ही होगा। प्रयास की जरूरत पड़ सकती है; अभिनय भी हो सकता है। इसकी चिंता न करें। प्रयोग जारी रखें। शीघ्र ही तुम उन स्रोतों का स्पर्श करोगे, जहाँ तुमने बहुत सी बातें दमन करके रखी हुई हैं। तुम उन स्रोतों से सम्पर्क करोगे, और एक बार वे बाहर निकल जाएँ तो तुम निर्भार अनुभव करोगे। एक नया जीवन तुममें आएगा; एक नया जन्म घटित होगा।

यह निर्भार होना आधारभूत है और इसके बिना, आदमी जैसा है, उसे ध्यान नहीं हो सकता। यह दूसरा चरण ही मन के अंधेरों को बाहर लाता है. इस दूसरे चरण के साथ, जब दमित आवेग बाहर फेंक दिए जाते हैं, आप खाली हो जाते हैं। और यही अर्थ होता है खाली होने काः समस्त दमनों से खाली हो जाना। इस खालीपन में रूपांतरण घटित हो सकता है; ध्यान घटित हो सकता है।

फिर तीसरे चरण में "हू' के उच्चर का उपयोग करना है। अतीत में कई प्रकार की ध्वनियों का उपयोग किया गया है। प्रत्येक ध्वनि का एक विशेष प्रभाव है। उदाहरण के लिए हिंदू लोग "ओम्' की ध्वनि का उपयोग करते रहे हैं। सूफियों ने "हू' का उपयोग किया है, और यदि आप जोर से "हू' कहो, तो यह गहरे में तुम्हारे काम-केंद्र तक जाता है। इसलिए इस ध्वनि का उपयोग किया गया है आपके भीतर चोट करने के लिए। जब आप रिक्त और खाली हो गए, तब यह ध्वनि आपके भीतर गति कर सकती है।

चौथा चरण छला ँग है। चौथे चरण में एकदम रुक जाना है, जैसे तूफान के बाद शांति आती है. इसी चरण में आपकी ऊर्जा ऊर्ध्वगमन करने लगेगी. टहसा और दुष्टता में नीचे की ओर प्रवाहित होनेवाली ऊपर उठने लगेगी और आप आनंद और शांति से आपूरित हो जाएँगे।

आपका पूरा शरीर इतना शांत और मौन हो जाएगा, मानो कि वह विलीन ही हो गया हो। इस तरह का शांत मनुष्य कभी भी अपने हाथों में बम या बंदूक नहीं ले सकता। उसके हृदय में प्रेम ही जन्म लेगा।

इस ध्यान का पाँचवाँ चरण है अहोभाव उत्सव और नृत्य. नकार से सकार की लंबी यात्रा यह ध्यान केवल एक घंटे में पूरी करता है। लगभग चालीस से हजारों लोग यह ध्यान कर रहे हैं और अपने भीतर एक नया जन्म पा रहे हैं।
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