... जहाँ से हमारे सुख दु:खों में रूपांतरित होते हैं, वह सीमा रेखा है जहाँ नीचे दु:ख है, ऊपर सुख है इसलिए दु:खी आदमी सेक्सुअली हो जाता है। बहुत सुखी आदमी नॉन-सेक्सुअल हो जाता है क्योंकि उसके लिए एक ही सुख है। जैसे दरिद्र समाज है, दीन समाज है, दु:खी समाज है, तो वह एकदम बच्चे पैदा करेगा। गरीब आदमी जितने बच्चे पैदा करता है, अमीर आदमी नहीं करता। अमीर आदमी को अकसर बच्चे गोद लेने पड़ते हैं!
उसका कारण है। गरीब आदमी एकदम बच्चे पैदा करता है। उसके पास एक ही सुख है, बाकी सब दु:ख ही दु:ख हैं। इस दु:ख से बचने के लिए एक ही मौका है उसके पास कि वह सेक्स में चला जाए। वह ही उसके लिए एकमात्र सुख का अनुभव है, जो उसे हो सकता है। वह वही है।
अमीर आदमी को और भी बहुत सुख हैं। सुख छितर जाता है तो सेक्स इंटेंस नहीं रह जाता। उसकी इंटेंसिटी कम हो जाती है, उसकी तीव्रता कम हो जाती है। सुख और जगहों में फैल जाता है। बहुत तरह के सुख वह लेता है। संगीत का भी लेता है, साहित्य का भी लेता है, नृत्य का भी लेता है, विश्राम का भी लेता है। उसका सुख और तलों पर भी फैलता है। फैलने की वजह से सेक्स इंटेंसिटी कम हो जाती है। गरीब और किसी तरह के सुख नहीं लेता, बस एक ही सुख रह जाता है कि सेक्स भर उसको सुख देता है। बाकी सब दु:ख की दु:ख हैं दिन भर। श्रम, मेहनत, गिट्टी फोड़ना, तोड़ना, वहीं सब है।
सेक्स जो है, वह प्रकृति के द्वारा दिया गया सुख भाव है। अगर कोई आदमी इसमें ही जाता चला जाए तो सामान्यत: जीवन दु:ख होगा, सेक्स सुख होगा। और आदमी सारे दु:ख सहेगा सिर्फ सेक्स के सुख के लिए। लेकिन अगर उससे ऊपर उठना शुरू हो जाए, यानी और खोजें हैं, वही धर्म का सारा का सारा जो जगत है, वह सेक्स के ऊपर सुख खोजने का जगत है। जैसे-जैसे ऊपर, सेक्स के ऊपर सुख मिलना शुरू होता है, वह जो शक्ति सेक्स से प्रकट होकर सुख पाती थी, वह नए द्वारों से झाँककर सुख पाने लगती है। और धीरे-धीरे सेक्स के द्वार से विदा होने लगती है ऊपर उठने लगती है।
इसको कोई कुंडलिनी कहे, कोई और नाम दे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कुल मामला इतना है कि सेक्स सेंटर के पास सारी शक्ति इकट्ठी है, वह रिजर्वायर है। अगर आप शक्ति को ऊपर ले जा सकते हैं तो वह रिजर्वायर नीचे की तरफ शक्ति को फेंकना बंद कर देगा। और अगर आप ऊपर नहीं ले जा सकते हैं तो वह रिजर्वायर रिलीज करेगा। और बड़े मजे की बात है कि सेक्स का जो सुख है साधारणत:, वह रिलीज का ही सुख है। इतनी शक्ति इकट्ठी हो जाती है कि वह भारी, टेंस हो जाती है, उसको रिलीज कर दिया।
अब समझ लो कि एक आदमी ऊपर भी नहीं गया और सेक्स के रिजर्वायर को भी उसने रिलीज करना बंद कर दिया, तो अब उसकी शक्तियाँ नीचे उतरनी शुरू होंगी- सेक्स से भी नीचे। और ये शक्तियाँ क्या करेंगी? क्योंकि सेक्स सुख की सीमा है, उसके नीचे दु:ख की सीमाएँ हैं। अब ये शक्तियाँ क्या करेगी? ये सैडिस्ट या मैसोचिस्ट हो जाएँगी। या तो ये खुद को सताएँगी या दूसरे को सताएँगी।
और मजे की बात यह है कि जो मजा आएगा, वह सेक्सुअल जैसा ही है। यानी जो आदमी अपने को कोड़े मार रहा है, वह आदमी कोड़े मारकर उतनी शक्ति रिलीज कर देगा, जितनी सेक्स से होती हो सुख देती। उतनी शक्ति रिलीज होकर वह थककर विश्राम करेगा। उसको बड़ा आराम मिलेगा। हमको लगेगा कि इस आदमी ने बड़ा कष्ट दिया अपने को, उसके लिए एक तरह का आराम है वह, क्योंकि शक्ति रिलीज हो गई।
और ऐसा जो आदमी, जो खुद को दु:ख देने में सुख पाने लगेगा- यह एक तरह का खुद को दु:ख देने में सुख पाना है- जो आदमी खुद को दु:ख देने में सुख पाने लगेगा, वह दूसरों को दु:ख देने में भी सुख पाने लगेगा। वह दूसरों को भी सताएगा, दूसरों को भी परेशान करेगा, दूसरों को भी परेशान करने के कई उपाय खोजेगा।