गणगौर उत्सव का उल्लास

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29 मार्च से मालवा अंचल में नौ दिवसीय गणगौर उत्सव का उल्लास छाएगा। जिन घरों में गणगौर की पूजा होगी वहाँ न केवल नौ दिनों तक मंगल गीत गूँजेंगे, बल्कि जवारे लगाने और सींचने का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा। मंगलवार को दशमी है और परंपरानुसार इसी तिथि से ही जवारे बोने की शुरुआत होती है।

गणगौर मूलतः राजस्थानी पर्व है, लेकिन मालवा और निमाड़ में भी इसकी धूम रहती है। घरों में गणगौर को श्रृंगारित कर बैठाया जाता है। कहीं गणगौर बैठती है तो कहीं गणगौर के साथ ईश्वरजी भी बैठाकर पूजा की जाती है।

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मालवा और निमाड़ क्षेत्र में गणगौर पूजा विशेष रूप से होती है और महिलाएँ गीत गाती हैं। गीत गाने के लिए आसपास की महिलाओं को तो बुलाया ही जाता है, गणगौर तीज का उद्यापन भी होता है। उन दिनों गणगौर उत्सव चरम पर रहता है।

गणगौर तीज 6 अप्रैल को है और इसी दिन सुबह शुभ मुहूर्त में गणगौर को पाटले पर बैठा दिनभर पूजा की जाएगी। रात को गणगौर के पारंपरिक गीत गाएँगे और फिर दूसरे दिन चतुर्थी को जवारे नदी में प्रवाहित कर गणगौर को ठंडा किया जाएगा।
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