देवशयनी एकादशी : कैसे करें व्रत-पूजन

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आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर-सागर में शयन करते हैं।
 
पुराणों का ऐसा भी मत है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यंत (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को 'देवशयनी' तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी को 'प्रबोधिनी' एकादशी कहते हैं।

देवशयनी एकादशी व्रत कैसे करें...
 
* एकादशी को प्रातःकाल उठें।
 
* इसके बाद घर की साफ-सफाई तथा नित्य कर्म से निवृत्त हो जाएं।
 
* स्नान कर पवित्र जल का घर में छिड़काव करें।

* घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें।
 
* तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें।
 
* इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें।

* तत्पश्चात व्रत कथा सुननी चाहिए।
 
* इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें।
 
* अंत में सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए।
 
* व्यक्ति को इन चार महीनों के लिए अपनी रुचि अथवा अभीष्ट के अनुसार नित्य व्यवहार के पदार्थों का त्याग और ग्रहण करना चाहिए।

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