बैसाखी पर्व : नववर्ष का आगमन

भंगड़ा पाओ कि आई बैसाखी

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बैसाखी पर्व नववर्ष का आगमन है। खुशहाली, हरियाली और अपने देश की समृद्धि की कामना करते हुए पंजाबी समुदाय के लोग पूजा-अर्चना, दान-पुण्य एवं दीप जलाकर बैसाखी पर ढोलों की ताल पर गिद्दा ते भंगड़ा, नाच-गाकर यह पर्व मनाते हैं। पुरातन काल से ही हमारे देश की उन्नति का आधार कृषि रहा है और भारत एक कृषि प्रधान देश है।

ऐसे में पंजाब का उल्लेख जरूरी है, जहाँ बहने वाली पाँच नदियाँ जो पंजाब की जीवन रेखाएँ होकर ममतामयी माँ की तरह अपना आँचल फैला रही हैं। उस पंजाब में कृषि की प्रधानता होने के नाते वैशाख माह का महत्व अपने आप बढ़ जाता है और बैसाखी उसी नववर्ष के आगमन और खुशियों का महत्व है।

सिख पंथ की स्थापना : वैशाख माह का अपना एक महत्व है, इसका एक गौरवपूर्ण इतिहास है। इतिहास की दृष्टि से 13 अप्रैल 1699 में सिख पंथ की स्थापना हुई थी। सिक्खों के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म इसी माह में हुआ था। वहीं ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना, महाराजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत का शुभारंभ, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक, नवरात्रों का आरंभ, सिंध प्रांत के समाज रक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल का जन्म दिवस, महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना, धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक, महावीर जयंती आदि अनेक गौरवपूर्ण इतिहास वैशाख माह से जुड़ा है।

पर्व एक महत्व अनेक : देश के अनेक राज्यों में 13 एवं 14 अप्रैल का अपना एक अलग महत्व है। इस दिन से नववर्ष की शुरुआत होती है।

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पंजाब की बैसाखी : पंजाब में सैकड़ों वर्षों से हर वर्ष 13 अप्रैल को नए साल की शुरुआत होती है। खालसा संवत बैसाखी से शुरू होता है और वैशाख माह पंजाब के कृषकों के लिए खुशहाली का प्रतीक है। बैसाखी पर ही किसान अपनी फसल की कटाई करता है तथा धार्मिक रूप से आसपास की पावन नदियों, तालाबों पर पवित्र स्नान कर पूजा-अर्चना करता है और नए वस्त्र धारण करता है। बैसाखी के दिन अमृतसर के जलियाँवाला बाग में अंग्रेज जनरल डायर द्वारा क्रूरतापूर्ण सैकड़ों लोगों को गोलियों का निशाना बनाकर मार दिया गया, तभी से उन अमर शहीदों को बैसाखी के दिन श्रद्धांजलि दी जाती है।

बंगालियों का शुभो नॉबो बॉरसो : बंगाल का नया वर्ष वैशाख महीने के पहले दिन 14 अप्रैल से शुरू होता है। बंगाल में इस दिन से ही फसल की कटाई शुरू होती है। बंगाली इस दिन नया काम करना शुभ मानते हैं। महिलाएँ नए धान के पकवान बनाती हैं।

मलयाली न्यू ईयर विशु : मलयाली न्यू ईयर विशु वैशाख की 13-14 अप्रैल से ही शुरू होता है। केरल में इस दिन धान की बोवनी शुरू होती है। इस दिन हल और बैलों को रंगोली से सजाया जाता है, पूजा-अर्चना की जाती है और बच्चों को उपहार दिए जाते हैं।

तमिल में पुथांदू : तमिल के लोग 13 अप्रैल से नया साल पुथांदू मनाते हैं। असम में लोग 13 अप्रैल को नया वर्ष बिहू मनाते हैं।

कश्मीर में नवरेह : सप्तऋषि के अनुसार नवरेह नाम से इसे नववर्ष के महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

आंध्रप्रदेश में उगादि : कृषकों के लिए इसका विशेष महत्व है। इसे उगादि तिथि अर्थात युग के आरंभ के रूप में मनाया जाता है।

महाराष्ट्र और दक्षिण : इन राज्यों में इसे अलग-अलग कारण से मनाया जाता है, लेकिन सबसे बड़ा कारण यह है कि इस दिन ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया और समय ने आज से चलना प्रारंभ किया था। यह श्रीखंड और पूड़ी का भी त्योहार है। महिला एवं बच्चों को उपहार दिए जाते हैं। वहीं गरीबों को भोजन एवं दान दिया जाता है और घरों में कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं।

अखंड भारत के समय से भारत की संस्कृति से जु़ड़ा यह पर्व एकता, भाईचारे और उन्नति का सूत्र रहा है, वहीं देश के अनेक राज्यों में बैसाखी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।

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