सर्वोत्तम मास में करें सप्त सागर के दर्शन

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पुराणों में उल्लेख है कि वैशाख मास में अधिक मास का आना महत्वपूर्ण है। इस मास में दिया गया दान 3 गुना अधिक फलदायी है। इसमें पहले मास की अमावस्या से दूसरे मास की अमावस्या तक अधिक मास यानी पुरुषोत्तम मास कहते हैं।

अधिक मास का महत्व मानने वाले धर्म के मान से धार्मिक यात्रा करते हैं। इसमें सबसे ज्यादा उज्जैन के सप्तसागर, नौ नारायण और चौरासी महादेव की यात्रा फलदायी बताई गई है। सप्त सागर दर्शन के स्थान एवं दान सामग्री की जानकारी।

रुद्रसागर : जो उज्जैन में माँ हरसिद्धि की पाल पर स्थित है। वहाँ पर नमक, श्वेत वस्त्र, चाँदी के नंदी की मूर्ति का दान करना चाहिए।

पुष्कर सागर : ये नलिया बाखल में स्थित है और इसमें पीला वस्त्र, चना दाल, स्वर्णदान किया जाता है।

क्षीरसागर : नई सड़क पर बसा है। साबूदाने की खीर, पात्र दान किया जाता है।

गोवर्धन सागर : निकास चौराहा पर स्थित है। यहाँ पर माखन, मिश्री, पात्र में गेहूँ और लाल वस्त्र दान करना शुभ होता है।

रत्नाकर सागर : ग्राम उंडासा तालाब पर स्थित है। यहाँ पंचरत्न, महिला के श्रृंगार की सभी वस्तुएँ एवं महिला के वस्त्रों का दान किया जाता है।

विष्णु सागर : अंकपात मार्ग, श्रीराम-जनार्दन मंदिर के पास (पाल पर) है। यहाँ भगवान विष्णु की मूर्ति, आसन, पंचपात्र, गोमुखी, ग्रंथ, माला, भू देव के पूर्ण वस्त्रदान ‍दान किए जाते हैं।

पुरुषोत्तम सागर : अंकपात दरवाजा के पास स्थित है, जिसे सोलह सागर भी कहते हैं। यहाँ चलनी, मालपुआ का दान की करने की परंपरा है।

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नौ नारायण दर्शन : अनंतनारायण मंदिर अनंत पेठ दानी दरवाजा के पास, सत्यनारायण मंदिर ढाबा रोड पर, पुरुषोत्तम नारायण मंदिर क्षीरसागर के घाट पर, आदि नारायण मंदिर सेंट्रल कोतवाली (कंठाल), शेषनारायण मंदिर क्षीरसागर पर, पद्मनारायण मंदिर क्षीरसागर पर, लक्ष्मीनारायण मंदिर गुदरी बाजार व मालीपुरा पर, बद्रीनारायण मंदिर श्रीरामजी की गली (छोटा सराफा), चतुर्भुज नारायण मंदिर ढाबा रोड स्थित हाड़ा गुरु के मकान में, मुंशी राजा का बाड़ा, ढाबा रोड पर।

चौरासी महादेव पूजन सामग्री : जल, पंचामृत, जनेऊ (यज्ञोपवीत), चंदन, अबीर, गुलाल, अक्षत, कुंकू, प्रसाद, दीपक, माचिस, अगरबत्ती, धूपबत्ती, नाड़ा, रजत बिल्वपत्र, श्रीफल, कर्पूर, दान-दक्षिणा भेंट इत्यादि, पूजा-पाठ पश्चात भूलचूक हेतु देव से क्षमा याचना करें।

चौरासी महादेव यात्रा प्रारंभ : श्री अगस्तेश्वर महादेव मंदिर से प्रारंभ होकर वहीं पुनः दर्शनोपरांत समाप्त होती है। 84 महादेव की कथा का वर्णन स्कंद पुराण में शंकर-पार्वती के माध्यम से वर्णित है।

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