भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी (बलदाऊ) के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। श्री बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है।
इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम 'हल षष्ठी' पड़ा। भारत के कुछ पूर्वी हिस्सों में इसे 'ललई छठ' भी कहा जाता है।
हलछठ व्रत कैसे करें :-
* अंत में निम्न मंत्र से प्रार्थना करें- गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते। स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्॥ ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि। अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः ॥ - अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए ।
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