जो क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं, पढ़ें अक्षय तृतीया का महत्व और मुहूर्त

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सतयुग का प्रारंभ और परशुराम का अवतार
 
वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्त मानी गई है, जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि अक्षय तृतीया की यह तिथि पुण्यदायी है। भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन से ही सतयुग का प्रारंभ हुआ था। नर-नारायण, परशुराम का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। माना जाता है कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव इसी दिन हुआ था।

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बिना मुहूर्त खरीददारी शुभ
 
ऐसी मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीदारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीदारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उद्घाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। उत्तम पति की प्राप्ति के लिए भी कुंवारी कन्याओं को अक्षय तृतीया का व्रत रखना चाहिए। जिन लोगों को संतान का सुख नहीं मिल रहा है, उनको भी अक्षय तृतीया का व्रत जरूर रखना चाहिए।

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पूजा का शुभ मुहूर्त
 
28 अप्रैल को दोपहर 1.38 बजे के बाद अक्षय तृतीया तिथि शुरू होगी। चूंकि शास्त्रों में अक्षय तृतीया को अपरान्ह व्यापिनी तिथि माना गया है अतः 28 अप्रैल को ही मनाई जाएगी। पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 6.35 से 8.35 तक, मध्यान्ह में 1 से 3.12 बजे तक और सायंकाल 5 से 8 बजे के बीच है।

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