Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

आशा दशमी पर्व क्या है, क्यों मनाया जाता है, जानें, महत्व और पूजन के शुभ मुहूर्त

Advertiesment
हमें फॉलो करें Asha Dashami Vrat 2025

WD Feature Desk

, शुक्रवार, 4 जुलाई 2025 (14:30 IST)
2025 Asha dashmi : आशा दशमी का पर्व हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे अपनी आशाओं और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रखा जाता है। 'आशा' का अर्थ है इच्छा या कामना, और 'दशमी' चंद्र पखवाड़े के दसवें दिन को दर्शाता है। यह व्रत मुख्यतः माता पार्वती को समर्पित है, जो शक्ति, भक्ति और वैवाहिक सद्भाव का प्रतीक हैं। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत में कुछ समुदायों द्वारा मनाया जाता है, जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों में इसे कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भी मनाया जाता है।ALSO READ: सावन मास में शिवजी की पूजा से पहले सुधारें अपने घर का वास्तु, जानें 5 उपाय
 
कब है आशा दशमी पर्व 2025: वर्ष 2025 में, आशा दशमी का पर्व 5 जुलाई 2025, शनिवार को मनाया जाएगा। यह आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पड़ता है।
 
आशा दशमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त (5 जुलाई 2025)
आशा दशमी पर देवी पार्वती और 10 आशा देवियों की पूजा की जाती है। इस व्रत में पूजा के लिए कोई विशेष 'चौघड़िया' या 'राहुकाल' मुहूर्त नहीं देखा जाता है, बल्कि मुख्य रूप से दशमी तिथि के दौरान कभी भी पूजा की जा सकती है।
• दशमी तिथि प्रारंभ: 4 जुलाई 2025, शुक्रवार, रात्रि 10:20 बजे
• दशमी तिथि समाप्त: 5 जुलाई 2025, शनिवार, रात्रि 11:56 बजे
उदया तिथि के अनुसार, आशा दशमी का व्रत 5 जुलाई 2025, शनिवार को ही रखा जाएगा। आप इस पूरे दिन में अपनी सुविधानुसार पूजा कर सकते हैं।
 
क्यों मनाया जाता है आशा दशमी पर्व: आशा दशमी पर्व मनाने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण और मान्यताएं हैं...
 
1. मनोकामनाओं की पूर्ति: जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी आशाएं और इच्छाएं पूर्ण होती हैं। यह जीवन में शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
 
2. आरोग्य और निरोगी काया: इस व्रत को आरोग्य व्रत भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसके प्रभाव से शरीर निरोगी रहता है, मन शुद्ध होता है, और असाध्य रोगों से भी मुक्ति मिल सकती है।
 
3. उत्तम वर की प्राप्ति: यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं द्वारा उत्तम और मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए रखा जाता है।

4. पति की शीघ्र वापसी: यदि किसी स्त्री के पति लंबी यात्रा पर गए हों और जल्दी लौट न रहे हों, तो यह व्रत करने से उनकी शीघ्र वापसी की कामना पूरी होती है।

5. शिशु की दंतजनिक पीड़ा: मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से शिशुओं को होने वाली दांत निकलने की पीड़ा भी दूर हो जाती है।
 
6. महाभारत काल से संबंध: इस व्रत का प्रारंभ महाभारत काल से माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को इस व्रत का महत्व बताया था।
 
अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म, ज्योतिष, इतिहास, पुराण आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं, जो विभिन्न सोर्स से लिए जाते हैं। इनसे संबंधित सत्यता की पुष्टि वेबदुनिया नहीं करता है। सेहत या ज्योतिष संबंधी किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। इस कंटेंट को जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है जिसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।ALSO READ: देवशयनी एकादशी की पूजा, उपाय, व्रत का तरीका, मंत्र और महत्व

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Amarnath Yatra 2025: कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच 6411 तीर्थयात्रियों का तीसरा जत्था अमरनाथ यात्रा के लिए रवाना