Ashunya Vrat 2023 : जब तक चातुर्मास चलता तब तक हर माह की द्वितीया यानी दूज को अशून्य शयन का व्रत रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद की दूज यानी 01 सितंबर को यह व्रत रखा जा रहा है। महाभारत में इस व्रत का वर्णन भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से किया था और इसका महत्व भी बताया था। आओ जानते हैं इस व्रत की विधि और महत्व।
पुरुष क्यों करते हैं ये उपवास?
जिस तरह महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं उसी तरह पुरुष अपनी पत्नी की लंबी आयु और सेहत के लिए अशून्य शयन का व्रत रखता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पति पत्नी का 7 जन्मों तक का साथ बना रहता है। इस व्रत को विधि विधान से करने कर पति पत्नी के बीच रिश्तों में मधुरता बढ़ती है।
अशून्य शयन व्रत की पूजा विधि:-
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स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ कपड़े धारण करें।
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पूजा घर के सामक्ष माता लक्ष्मी और श्रीहरि विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
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इसके बाद संध्याकाल में माता लक्ष्मी और विष्णुजी का चित्र या मूर्ति स्थापित करके विधि विधान से उनकी पूजा करें।
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मां लक्ष्मी और विष्णु जी की षोडोषपचार या पंचोपचार पूजा करें। यानी 16 प्रकार की सामग्री या 5 प्रकार की सामग्री से पूजा करें।
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इसके बाद माता लक्ष्मी को श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए।
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इसके बाद चंद्रोदय के समय दही, अक्षत तथा फल से अर्घ्य अर्पित करना चाहिए।
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अंत में आरती उतारकर प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
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संभव हो तो कन्या भोज या ब्राह्मण भोज कराना चाहिए या यथाशक्ति गरीबों को दान देने चाहिए।
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इसके बाद व्रत का पारण कर सकते हैं।
अशून्य शयन व्रत का मंत्र
“लक्ष्म्या न शून्यं वरद यथा ते शयनं सदा।
शय्या ममाप्य शून्यास्तु तथात्र मधुसूदन।।”