दशलक्षण पर्व 2020 : दिगंबर जैन समाज का पर्युषण पर्व 23 अगस्त से प्रारंभ

अनिरुद्ध जोशी
शनिवार, 22 अगस्त 2020 (16:09 IST)
श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जिसे 'अष्टान्हिका' कहते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे 'दशलक्षण' कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य।
 
 
दसलक्षण : श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे 'दसलक्षण' कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्नव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य। इसे 'दसलाक्षिणी' पर्व भी कहा गया है। यह संतों के साथ ही गृहस्थों के लिए भी कर्तव्य कहे गए हैं। गृहस्थों को इन 10 दिनों तक दसलक्षण का पालन करना चाहिए।
 
दिगंबर जैन धर्म में दशलक्षण पर्व का बहुत महत्व है। दशलक्षण पर्व के दौरान जिनालयों में धर्म प्रभावना की जाएगी। दिगंबर जैन समाज में पयुर्षण पर्व/दशलक्षण पर्व के प्रथम दिन उत्तम क्षमा, दूसरे दिन उत्तम मार्दव, तीसरे दिन उत्तम आर्जव, चौथे दिन उत्तम सत्य, पांचवें दिन उत्तम शौच, छठे दिन उत्तम संयम, सातवें दिन उत्तम तप, आठवें दिन उत्तम त्याग, नौवें दिन उत्तम आकिंचन तथा दसवें दिन ब्रह्मचर्य तथा अंतिम दिन क्षमावाणी के रूप में मनाया जाएगा। 
 
दशलक्षण पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया जाता है। जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है।
 
कैसे मनाते हैं ये पर्व : इस पर्व पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत−उपवास रखते हैं। इस दौरान जैन व्रती कठिन नियमों का पालन भी करते हैं जैसे बाहर का खाना पूर्णतः वर्जित होता है, दिन में केवल एक समय ही भोजन करना आदि। मंदिरों को भव्यतापूर्वक सजाते हैं तथा भगवान महावीर का अभिषेक कर विशाल शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं। पर्युषण पर्व की समाप्ति पर मंदिर और घर पर क्षमा की विजय पताका फहराते हैं।
 
पर्युषण का महत्व : यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस पर्वानुसार- 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो।
 
इन दिनों साधुओं के लिए 5 कर्तव्य बताए गए हैं- संवत्सरी, प्रतिक्रमण, केशलोचन, तपश्चर्या, आलोचना और क्षमा-याचना। गृहस्थों के लिए भी शास्त्रों का श्रवण, तप, अभयदान, सुपात्र दान, ब्रह्मचर्य का पालन, आरंभ स्मारक का त्याग, संघ की सेवा और क्षमा-याचना आदि कर्तव्य कहे गए हैं।
 
पर्युषण पर्व जैन धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व बुरे कर्मों का नाश करके हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा से यह पर्व अलग अलग तरीके से मनाते हैं। हालांकि इसमें कोई खास फर्क नहीं है। यह सभी पर्वों का राजा है। इसे आत्मशोधन का पर्व भी कहा गया है, जिसमें तप कर कर्मों की निर्जरा कर अपनी काया को निर्मल बनाया जा सकता है। 
 
पर्युषण पर्व के समापन पर 'विश्व-मैत्री दिवस' अर्थात संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। अंतिम दिन दिगंबर 'उत्तम क्षमा' तो श्वेतांबर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: आज क्‍या कहते हैं आपके तारे? जानें 22 नवंबर का दैनिक राशिफल

22 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

22 नवंबर 2024, शुक्रवार के शुभ मुहूर्त

Prayagraj Mahakumbh : 485 डिजाइनर स्ट्रीट लाइटों से संवारा जा रहा महाकुंभ क्षेत्र

Kanya Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: कन्या राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

अगला लेख