Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

जिउतिया व्रत कथा 2019 : 33 घंटे का निर्जला व्रत है इस बार, जानिए कथा

हमें फॉलो करें जिउतिया व्रत कथा 2019 : 33 घंटे का निर्जला व्रत है इस बार, जानिए कथा
वंश वृद्धि व संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी 21 और 22 सितंबर को जिउतिया (जीमूतवाहन) का व्रत रखेंगी। लगभग 33 घंटे के इस व्रत में व्रती निर्जला और निराहार रहती हैं। सनातन धर्मावलंबियों में इस व्रत का खास महत्व है।

व्रत से एक दिन पहले सप्तमी 20 सितंबर को महिलाएं नहाय-खाए करेंगी। गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद मड़ुआ रोटी, नोनी का साग, कंदा, झिमनी आदि का सेवन करेंगी। व्रती स्नान-भोजन के बाद पितरों की पूजा भी करेंगी। सूर्योदय से पहले सरगही-ओठगन करके इस कठिन व्रत का संकल्प लिया जाएगा। व्रत का पारण 22 सितंबर की दोपहर में होगा।
 
इस बार शनिवार 21 और रविवार 22 सितंबर को जिउतिया का व्रत रखेंगी। आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी 21 को पूरे दिन और 22 सितंबर की दोपहर तीन बजे तक है। अरसे बाद जिउतिया व्रत 24 घंटे से अधिक समय का है। रविवार 22 सितंबर को दोपहर तीन बजे व्रती पारण करेंगी।
 
इस व्रत को जितिया या जीउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जानते हैं। अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत का बड़ा महात्म्य है। गोबर-मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा कुश के जीमूतवाहन व मिट्टी-गोबर से सियारिन व चूल्होरिन की प्रतिमा बनाकर व्रती महिलाएं जिउतिया पूजा करेंगी। फल-फूल, नैवेद्य चढ़ाए जाएंगे। जिउतिया व्रत में सरगही या ओठगन की परंपरा भी है।
 
इस व्रत में सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है। रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है। सरगी में मिष्ठान आदि भी होता है। मिथिला में मड़ुआ रोटी और मछली खाने की परंपरा जिउतिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी को मिथिलांचलवासियों में भोजन में मड़ुआ रोटी के साथ मछली भी खाने की परंपरा है। जिनके घर यह व्रत नहीं भी होता है उनके यहां भी मड़ुआ रोटी व मछली खाई जाती है। व्रत से एक दिन पहले आश्विन कृष्ण सप्तमी को व्रती महिलाएं भोजन में मड़ुआ की रोटी व नोनी की साग बनाकर खाएंगी। 
 
जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा : इस व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा अपने पिता की मृत्यु की वजह से क्रोध में था। वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था। एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला। उसे लगा था कि ये पांडव हैं। लेकिन वो सब द्रौपदी के पांच बेटे थे। इस अपराध की वजह से अर्जुन ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसकी मणि छीन ली।

इससे आहत अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था। जिस वजह से श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया। गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और यही आगे चलकर राज परीक्षित बने। तब से ही इस व्रत को रखा जाता है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Shardiya Navratri 2019 : नवरात्रि के 9 दिन इन 9 रंगों से करें पूजन, मां दुर्गा होंगी प्रसन्न