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Kartik Purnima 2025: कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और पौराणिक कथा

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WD Feature Desk

, गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025 (10:30 IST)
Tripurari Purnima 2025: हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र तिथि है। इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा और देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। यह वह शुभ दिन है जब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की सिद्धि के लिए पवित्र नदियों में स्नान, दान और दीपदान का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्वयं देवी-देवता पृथ्वी पर आकर गंगा आदि पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और अपनी खुशी का इजहार करने के लिए दीये जलाते हैं।ALSO READ: Kartik Month 2025: क्यों खास है कार्तिक माह? जानिए महत्व और इस महीने में क्या करें और क्या करने से बचें
 
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व: कार्तिक पूर्णिमा का दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इससे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही, दीपदान यानी दीपक जलाना और अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़ आदि का दान करने से अनंत पुण्य मिलता है। 
 
माना जाता है कि इस दिन सभी देवता पृथ्वी पर आकर दिवाली मनाते हैं। इसलिए शाम के समय मंदिरों, घाटों और घरों में दीपक जलाए जाते हैं। इसे देव दीपावली पर्व भी कहते हैं यह दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की पूजा के लिए बहुत शुभ है। साथ ही सिख धर्म में भी इस दिन का बहुत महत्व हैं, क्योंकि इसी दिन सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था, इसलिए इसे सिख समुदाय द्वारा गुरु पर्व या प्रकाशोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।ALSO READ: Kartik Month 2025: कार्तिक मास में कीजिए तुलसी के महाउपाय, मिलेंगे चमत्कारी परिणाम बदल जाएगी किस्मत
 
पौराणिक कथा (त्रिपुरासुर वध): कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहने के पीछे एक प्रमुख पौराणिक कथा है:
 
कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा कहने के पीछे यह कथा है कि तारकासुर नामक राक्षस के तीन पुत्र थे, तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। शिवपुत्र कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध किए जाने के बाद, उसके पुत्रों ने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें अमरता का वरदान देने से मना कर दिया, लेकिन उन्हें अद्भुत शक्ति दी। 
 
उन्होंने मयदानव की सहायता से आकाश में तीन नगरों (त्रिपुरों) का निर्माण किया। ये नगर सोने, चांदी और लोहे के थे और अत्यंत शक्तिशाली थे। इन तीनों असुरों ने तीनों लोकों पर कब्जा करके देवताओं को आतंकित करना शुरू कर दिया। सभी देवता परेशान होकर भगवान शिव के पास सहायता के लिए पहुंचे।
 
तब देवताओं की विनती पर, भगवान शिव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया और स्वयं उस पर सवार हुए। भयंकर युद्ध के बाद, जब ये तीनों नगर (त्रिपुर) एक सीध में आए, तब भगवान शिव ने अपने एक बाण से तीनों का नाश कर दिया। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। 
 
अत: असुरों पर इस विजय के उपलक्ष्य में, देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर उत्सव मनाया। इस विजय के कारण भगवान शिव को 'त्रिपुरारी' नाम मिला और यह पूर्णिमा 'त्रिपुरारी पूर्णिमा' कहलाई।ALSO READ: Kartik maas 2025: कार्तिक मास के व्रत एवं त्योहारों की लिस्ट

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