हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह आने वाले व्रतों की लिस्ट

WD Feature Desk
सोमवार, 18 मार्च 2024 (18:16 IST)
List of fasts of each month: हिंदू धर्म में प्रत्येक माह में व्रत और त्योहार आते हैं सभी का अपना अलग ही महत्व होता है। कई लोग इनका पालन करते हैं और इसके महत्व को समझते भी हैं। यह हमारे शरीर और मन की सेहत के लिए होते हैं। आओ जानते हैं कि कौन कौन से व्रत प्रत्येक माह में आते हैं।
 
1. दूज : कृष्ण और शुक्ल पक्ष की दूज दोनों का अलग अलग महत्व है। कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं। भाद्रपद माह की शुक्ल दूज को भाईदूज कहते हैं। आषाढ़ माह की दूज पर जगन्नाथ का पर्व मनाते हैं। श्रावण कृष्‍ण पक्ष की दूज पर विष्णु और लक्ष्मी की पूजा होती है। ज्येष्‍ठ माह के कृष्‍ण पक्ष पर नारद जयंती मनाते हैं। द्वितीया तिथि को सुमंगल कहा जाता है जिसके देवता ब्रह्मा है। यह तिथि भद्रा संज्ञक तिथि है। भाद्रपद में यह शून्य संज्ञक होती है। सोमवार और शुक्रवार को मृत्युदा होती है। बुधवार के दिन दोनों पक्षों की द्वितीया में विशेष सामर्थ आ जाती है और यह सिद्धिदा हो जाती है, इसमें किए गए सभी कार्य सफल होते हैं।
 
2. तृतीया : कृष्ण और शुक्ल पक्ष की तीज दोनों का अलग-अलग महत्व है। तृतीया तिथि की स्वामिनी गौरी है। बुधवार को मृत्युदा और मंगल को यह तिथि सिद्धदा होती है। शुक्ल और कृष्ण दोनों ही पक्ष की इस तिथि को शिवपूजन निषेध है। यह तिथि आरोग्य देने वाली है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया पर अक्षया तृतीया, चैत्र शुक्ल की तृतीया पर गणगौर तीज, ज्येष्ठ माह के शुक्ल तृतीया पर रंभा तीज, श्रावण शु्क्ल की तृतीया पर हरियाली तीज, भाद्रपद शुक्ल पक्ष को हरतालिका तीज और वराह जयंती, भाद्र कृष्‍ण पक्ष को कजरी तीज मनाया जाता है।
 
3. चतुर्थी : अधिकतर लोग चतुर्थी का व्रत रखते हैं। चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश हैं। इस तिथि का नाम 'खला' है और यह  तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है। चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टि और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को माघी चतुर्थी या तिल चौथ कहा जाता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी का जन्मोत्सव मनाते हैं। मंगलवार को आने वाली चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी कहते हैं।
 
4. पंचमी : पंचमी तिथि का स्वामी नाग होता है। यह 'पूर्णा संज्ञक' होकर इसका नाम 'श्रीमती' है। पौष मास के दोनों पक्षों में यह तिथि शून्य फल देती है। पंचमी तिथि की दिशा दक्षिण है। शनिवार के दिन पंचमी पड़ने पर मृत्युदा होती है जिससे इसकी शुभता में कमी आ जाती है। गुरुवार के दिन यही पंचमी सिद्धिदा होकर विशेष शुभ फलदायी है। शुक्ल पंचमी सुख देवे वाली और कृष्ण पंचमी श्री-प्राप्ति कारक है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष को ऋषि पंचमी, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष को रंग पंचमी, मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में विवाह पंचमी, माघ माह के शुक्ल पक्ष में बसंत पंचमी, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में सौभाग्य पंचमी, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में नाग पंचमी और चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में लक्ष्मी पंचमी व्रत का खास महत्व है।
 
6. षष्ठी : इस छठ भी कहते हैं। इसके स्वामी कार्तिकेय हैं और इसका विशेष नाम कीर्ति है। रविवार को पड़ने वाली षष्ठी मृत्युदा और शुक्रवार की सिद्धिदा होती है। माघ कृष्ण माह में यह शून्य होती है। इसकी दिशा पश्चिम है। भाद्र कृष्‍ण में हल षष्ठी, भाद्र शुक्ल में सूर्य षष्ठी,  आषाढ़ शुक्ल में स्कंद षष्ठी, अश्‍विन कृष्ण में चंद्र षष्ठी, मार्गशीर्ष शुक्ल में चंपा षष्ठी का महत्व है। 
 
7. सप्तमी : सप्तमी के स्वामी सूर्य और इसका विशेष नाम मित्रपदा है। शुक्रवार को पड़ने वाली सप्तमी मृत्युदा और बुधवार की सिद्धिदा होती है। आषाढ़ कृष्ण सप्तमी शून्य होती है। इस दिनए किए गए कार्य अशुभ फल देते हैं। इसकी दिशा वायव्य है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष को शीतला सप्तमी, भाद्रपद की शुक्ल सप्तमी को ललिता सप्तमी, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगा सप्तमी, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विष्णु सप्तमी, माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी का महत्व है।
 
8. अष्टमी : इस आठम या अठमी भी कहते हैं। कलावती नाम की यह तिथि जया संज्ञक है। मंगलवार की अष्टमी सिद्धिदा और बुधवार की मृत्युदा होती है। इसकी दिशा ईशान है। कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की अहोई अष्टमी, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की जन्माष्टमी, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की शीतला अष्टमी, सभी माह की दुर्गाष्टमी, फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की सीता अष्टमी, भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की राधा अष्टमी का महत्व है।
 
9. नवमी : यह चैत्रमान में शून्य संज्ञक होती है और इसकी दिशा पूर्व है। शनिवार को सिद्धदा और गुरुवार को मृत्युदा। अर्थात शनिवार को किए गए कार्य में सफलता मिलती है और गुरुवार को किए गए कार्य में सफलता की कोई गारंटी नहीं। सभी माह की नवमी, चैत्र माह शुक्ल पक्ष की रामनवमी, कार्तिक शुक्ल पक्ष की अक्षय नवमी का महत्व है। 
10. दशमी : शनवार को दशमी मृत्युदा और गुरुवार को सिद्धिदा होती है। अश्विन माह में दशमी शून्य संख्यक होकर शुभकार्यों के लिए वर्जित है। इसकी दिशा उत्तर है। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी और ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा का महत्व है। 
 
11. एकादशी : एकादशी तिथि के स्वामी विश्वेदेवा को माना गया है। एकादशी तिथि नंदा तिथियों की श्रेणी में आती है। यदि एकादशी रविवार और मंगलवार को है तो मृत्युदा, शुक्रवार को है तो सिद्धा होती है। सोमवार को है तो क्रकच योग बनाती है, जो अशुभ है। चैत्र माह में कामदा और वरूथिनी एकादशी, वैशाख माह में मोहिनी और अपरा, ज्येष्ठ माह में निर्जला और योगिनी, आषाढ़ माह में देवशयनी एवं कामिका, श्रावण माह में पुत्रदा एवं अजा, भाद्रपद में परिवर्तिनी एवं इंदिरा, आश्‍विन माह में पापांकुशा एवं रमा, कार्तिक माह में प्रबोधिनी एवं उत्पन्ना, मार्गशीर्ष में मोक्षदा एवं सफला, पौष में पुत्रदा एवं षटतिला, माघ में जया एवं विजया, फाल्गुन में आमलकी एवं पापमोचिनी, अधिकमास (तीन वर्ष में एक बार) में पद्मिनी एवं परमा एकादशी। 
 
12. द्वादशी : इसे बारस भी कहते हैं। इसकी दिशा नैऋत्य है। इसका नाम यशोबला और इसकी संज्ञा 'भद्रा' है। सोमवार को मृत्युदा और बुधवार को सिद्धिदा होती है। रविवार को मध्यम फल देने वाली होती है। माघ माह में तिल द्वादशी, भीष्म द्वादशी और गोविंद द्वादशी, भाद्रपद माह में गोवत्स द्वादशी, चैत्र माह में वामन द्वादशी और मार्गशीर्ष में अखण्ड द्वादशी, आश्विन माह में पद्मनाभ द्वादशी और वैसाख माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रूक्मिणी द्वादशी का पर्व मनाया जाता है।
 
13. त्रयोदशी : हर महीने की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। अलग-अलग वार को पड़ने वाले प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। जैसे मंगलवार को आने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। अनंग त्रयोदशी पर्व मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है।
 
14. चतुर्दशी : चतुर्दशी को चौदस भी कहते हैं। यह रिक्ता संज्ञक है एवं इसे क्रूरा भी कहते हैं। इसीलिए इसमें समस्त शुभ कार्य वर्जित है। इसकी दिशा पश्‍चिम है। फाल्गुन माह कृष्ण चतुर्दशी में महाशिवरात्रि, भाद्रपद माह अनंत चतुर्दशी, कार्तिक माह कृष्‍ण पक्ष में नरक चतुर्दशी और कार्तिक मास शुक्ल पक्ष में बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व है। 
 
15. पूर्णिमा : इस दिन चंद्रमा अपना प्रभाव ज्यादा छोड़ता है। यही वजह रही है कि हमारे ऋषि मुनियों ने इस दिन को व्रत का दिन बनाया है और इस दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है। कुछ मुख्य पूर्णिमा:- कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा, शरद पूर्णिमा, गुरु पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा आदि।
 
16. अमावस्या : अमावस्या की तिथि को नकारात्मक शक्तियों से जोड़ा गया है। इस दिन चंद्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता और सभी ओर मरघट सा सन्नाटा रहता है। कुछ मुख्‍य अमावस्या:- भौमवती अमावस्या, मौनी अमावस्या, शनि अमावस्या, हरियाली अमावस्या, दिवाली अमावस्या, सोमवती अमावस्या, सर्वपितृ अमावस्या आदि।
 

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