Narsingh Dwadashi 2025 : होली के पहले भगवान नृसिंह का नरसिंह द्वादशी व्रत प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि पर मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में नृसिंह द्वादशी के व्रत का विशेष महत्व कहा गया है। धार्मिक मान्यतानुसार यह दिन भगवान श्री विष्णु के नृसिंह अवतार को समर्पित है, जिसे होली के 3 दिन पहले मनाया जाता है। होली के पूर्व पड़ने वाला यह व्रत शुभ फलदायक माना गया है, जो कि अज्ञात भय, घरेलू कलह-क्लेश तथा शत्रुओं से पीड़ित लोगों के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं यहां नृसिंह द्वादशी व्रत के बारे में...ALSO READ: Holi 2025: 13 को होलिका दहन के बाद 14 को छोड़कर 15 मार्च को क्यों कह रहे हैं होली खेलने का?
कब है नृसिंह द्वादशी 2025 : हिंदू पंचांग कैलेंडर के अनुसार, इस वर्ष फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि 10 मार्च को सुबह 7 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 11 मार्च को शाम 8 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। अत: ऐसे में 11 मार्च को नृसिंह द्वादशी व्रत रखा जाएगा। लेकिन कैलेंडर के मतांतर के चलते यह व्रत सोमवार, 10 मार्च को मनाए जाने की संभावना है। बता दें कि इसी दिन गोविंद द्वादशी व्रत भी रखा जाता है।
नृसिंह द्वादशी व्रत का महत्व: यह व्रत भगवान नृसिंह के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है। इस व्रत को करने से मनुष्य को सांसारिक सुख, भोग और मोक्ष तीनों की प्राप्ति होती है। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और भय से मुक्ति पाने में सहायक माना जाता है। यह व्रत भगवान नृसिंह के आशीर्वाद से सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या जैसा महापाप भी मिट जाता है।ALSO READ: Falgun Maah 2025: फाल्गुन मास में क्या करें और क्या नहीं करें?
नृसिंह द्वादशी व्रत की पूजा विधि:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु और नृसिंह भगवान की प्रतिमा या चित्र को एक चौकी पर स्थापित करें।
- भगवान नृसिंह को पीले फूल, फल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- भगवान नृसिंह के मंत्रों का जाप करें।
- नृसिंह द्वादशी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
- दिन भर उपवास रखें और शाम को भगवान नृसिंह की आरती करने के बाद फलाहार करें।
- अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
नृसिंह द्वादशी व्रत की कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकशिपु नाम का एक राक्षस राजा था, जो भगवान विष्णु से घृणा करता था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ने के लिए कहा, लेकिन प्रह्लाद ने इनकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया, लेकिन भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर प्रह्लाद की रक्षा की और हिरण्यकशिपु का वध किया।
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