शबरी जयंती, जानिए 6 रहस्य

अनिरुद्ध जोशी
शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020 (12:07 IST)
रामायण में प्रसंग आता है कि भगवान श्रीराम ने शबरी के झूठे बैर खाएं थे। आओ जानते हैं माता शबरी के बारे में 5 रहस्य। 24 फरवरी 2020 को शबरी जयंती के उपलक्ष में।
 
 
1.पौराणिक संदर्भों के अनुसार शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। कहते हैं कि उसका विवाह दुराचारी और अत्याचारी व्यक्ति से हुआ था, जिससे तंग आकर श्रमणा ने ऋषि मातंग के आश्रम में शरण ली थी। दूसरी मान्यता के अनुसार उसके पिता ने जब उसका विवाह किया तो उस दौरान पशु बलि देखकर उसके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया था।
 
 
2. ऋषि मातंग के आश्रम में शबरी ऋषि-मुनियों की सेवा करती और प्रवचन सुनती। वहां रहकर उसके मन में प्रभु भक्ति जागृत हुई। मतंग ऋषि शबरी के गुरु थे। मतंग ऋषि के यहां माता दुर्गा के आशीर्वाद से जिस कन्या का जन्म हुआ था वह मातंगी देवी थी। दस महाविद्याओं में से नौवीं महाविद्या देवी मातंगी ही है। यह देवी भारत के आदिवासियों की देवी है।
 
 
3. ऋषि मतंग ने शबरी से एक समय कहा था कि तुम्हारी कुटिया में प्रभु श्रीराम आएंगे तभी तुम्हारे मोक्ष का मार्ग खुलेगा। बस तभी से शबरी प्रभु श्रीराम के आने का इंतजार कर रही थी। इंतजार करते-करते वह बुढ़ी हो गई लेकिन उसने आस नहीं छोड़ी थी।
 
 
4.तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए श्री राम और लक्ष्‍मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्‍चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी को ढूंडने लगे। लोगों से जब शबरी को पता चला की दो राजकुमार उन्हें ढूंढ रहे हैं तो शबरी व्याकुर हो ऊठी। वह समझ गई की मेरे प्रमु श्रीराम आ गए हैं। राम और शबरी के मिलन का तुलसीदासजी ने बहुत ही भावुक वर्णन किया है। शबरी की कुटिया में पहुंचने के बाद राम को देखकर शबरी की आंखों से आंसू बहने लगे। उनके गुरु की भविष्यवाणी सही हुई।
 
 
5.शबरी के पास वन-फलों की अनगिनत टोकरियां भरी थीं। उसमें से उन्होंने श्रीराम को बेर खिलाएं। कहते हैं कि कोई बेर खट्टा न हो इसलिए शबरी ने प्रत्येक बेर को पहले थोड़ासा चखा फिर ही श्री राम को दिया और श्री राम ने भी बड़े प्रेम से उसे खाया। तब श्री राम ने कहा कि मैंने वन में कई जगह और आश्रमों के फल खाए लेकिन इस इस बेर के फल में जो मिठास और रस है उसकी तुलना किसी ने नहीं की जा सकती। श्री राम ने यह बेर खाकर शबरी को नवधा भक्ति की शिक्षा दी और शबरी को परमधाम मिला। आजकल शबरी की कुटिया को शबरी का आश्रम कहा जाता है, जो केरल में स्थित है।
 
 
6.शबरी या मतंग ऋषि के आश्रम के क्षेत्र को प्राचीनकाल में किष्किंधा कहा जाता था। यहां की नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है। शबरी का भक्ति साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उन्होंने कई भजन लिखे हैं।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

सावन मास में कितने और कब कब प्रदोष के व्रत रहेंगे, जानिए महत्व और 3 फायदे

शुक्र का वृषभ राशि में गोचर, 3 राशियों के लिए होगी धन की वर्षा

देवशयनी एकादशी पर करें इस तरह से माता तुलसी की पूजा, मिलेगा आशीर्वाद

sawan somwar 2025: सावन सोमवार के व्रत के दौरान 18 चीजें खा सकते हैं?

एक्सीडेंट और दुर्घटनाओं से बचा सकता है ये चमत्कारी मंत्र, हर रोज घर से निकलने से पहले करें सिर्फ 11 बार जाप

सभी देखें

धर्म संसार

आषाढ़ अष्टाह्निका विधान क्या है, क्यों मनाया जाता है जैन धर्म में यह पर्व

Aaj Ka Rashifal: आज ये 4 राशि वाले रखें सावधानी, 03 जुलाई का राशिफल दे रहा चेतावनी

कैलाश मानसरोवर भारत का हिस्सा क्यों नहीं है? जानिए कब और कैसे हुआ भारत से अलग?

03 जुलाई 2025 : आपका जन्मदिन

03 जुलाई 2025, गुरुवार के शुभ मुहूर्त

अगला लेख