फुलैरा दूज : होली का प्रतीक पर्व

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जब खेतों में सरसों के पीले फूलों की मनभावन महक उठने लगे। जहाँ तक नजर जाए दूर-दूर तक केसरिया क्यारियाँ नजर आएँ। शरद की कड़ाके की ठंड के बाद सूरज की गुनगुनी धूप तन और मन दोनों को प्रफुल्लित करने लगे। खेतों की हरियाली और जगह-जगह रंगबिरंगे फूलों को देखकर मन-मयूर नृत्य करने लगे तो समझो बंसत ऋतु अपने चरम पर है।

बचपन से युवा अवस्था में कदम रखने वाले अल्हड़ युवक-युवतियाँ इस मौसम की मस्ती में पूरी तरह से डूब जाना चाहते हैं। किसानों की फसल खेतों में जैसे-जैसे पकने की ओर बढ़ने लगती है। तभी रंगों भरा होली का त्योहार आ जाता है। होली से कुछ दिन पहले आती है 'फुलैरा दूज'।

आज भी देहात क्षेत्र और गाँवों में इस दिन से सांय के समय घरों में रंगोली सजाई जाती है। इसे घर में होली रखना कहा जाता है। खुशियाँ मनाई जाती हैं। वह इसलिए क्योंकि होली आने वाली है। किसान घरों के बच्चे अपने खेतों में उगी सरसों, मटर, चना और फुलवारियों के फूल तोड़कर लाते हैं। इन फूलों को भी घर में बनाई गई होली यानी रंगोली पर सजाया जाता है।

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यह आयोजन उत्तर भारत के कई राज्यों के कई इलाकों में फुलैरा दूज से होली के ठीक एक दिन पहले तक लगातार होता रहता है। होली वाले दिन रंगोली बनाए जाने वाले स्थान पर ही गोबर से बनाई गई छोटी-छोटी सूखी गोबरीलों से होली तैयार की जाती है। होली के दिन हर घर में यह छोटी होली जलाई जाती है। इस होली को जलाने के लिए गाँव की प्रमुख होली से आग लाई जाती है।

उत्तर भारत ही नहीं होली का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है। मनाने के अंदाज भी जुदा हैं। पर होली की तैयारियाँ काफी पहले से शुरू हो जाती हैं। इस पर्व का दूसरा महत्व शादियों को लेकर है। होली से लगभग पंद्रह दिन पहले से शादियों का मुहूर्त समाप्त हो जाता है। ज्योतिष के अनुसार जिन शादियों में किसी और दिन शुभ मुहूर्त नहीं निकलता, उनके लिए फुलैरा दूज के दिन शादी करना शुभ माना जाता है।

सर्दी के मौसम के बाद इसे शादियों के सीजन का अंतिम दिन माना जाता है। इसके बाद नवरात्रि पर्व के साथ ही शादियों के लिए नए सीजन की शुरुआत होती है। इस वर्ष फलैरा दूज 16 फरवरी को होने के कारण इस दिन भार‍त भर में रिकार्ड तोड़ शादियाँ होने की उम्मीद हैं। शायद आपके पास भी कोई न कोई निमंत्रण तो होगा ही। तो फिर जोर शोर से कीजिए फुलैरा दूज का स्वागत।

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