16 फूलों की माला, 16 लड्डू, 16 भिन्न प्रकार के फल, पांच प्रकार के सूखे मेवे (ड्रायफ्रूट) 16 बार, सात प्रकार के अनाज सोलह बार, सोलह बार जीरा, सोलह बार धनिया, पान के सोलह पत्ते, 16 सुपारी, 16 लौंग, 16 इलायची तथा साड़ी सहित विभिन्न प्रकार के प्रसाधन के सामान तथा 16 चूड़ियां देवी को अर्पित की जाती है।
यह अति आवश्यक है कि इस पूजा में उपयोग की जाने वाली सभी सामग्री सोलह की संख्या में होनी चाहिए।
पूजा की विधि खत्म करने के बाद श्रद्धालु गौरी मंगला व्रत करने के कारण के कथा को कहते या सुनते हैं। यह कथा इस तरह है -
एक समय की बात है, एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे।
ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला था कि सोलह वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी।
परिणाम स्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती। इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने सौ साल की लंबी आयु प्राप्त की।
इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं तथा अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। जो महिला उपवास का पालन नहीं कर सकतीं, वे भी कम से कम इस पूजा तो करती ही हैं।
इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती हैं। इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती सोलह बाती वाले दीया से देवी की आरती करती हैं।
व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दी जाती है। इस व्रत और पूजा को परिवार की खुशी के लिए लगातार पांच वर्षों तक किया जाता है।