मदर टेरेसा : प्रोफाइल

Webdunia
27 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे में जन्मी एग्नेस गोंक्जा बोजाज्यू ही मदर टेरेसा बनीं। मात्र अठारह वर्ष की उम्र में लोरेटो सिस्टर्स में दीक्षा लेकर वे सिस्टर टेरेसा बनीं थी। 
फिर वे भारत आकर ईसाई ननों की तरह अध्यापन से जुड़ गई। कोलकाता के सेंट मैरीज हाईस्कूल में पढ़ाने के दौरान एक दिन कॉवेंट की दीवारों के बाहर फैली दरिद्रता देख वे विचलित हो गई। वह पीड़ा उनसे बर्दाश्त नहीं हुई और कच्ची बस्तियों में जाकर सेवा कार्य करने लगीं। इस दौरान 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और तत्पश्चात 'मिशनरीज ऑफ चैरिटी' की स्थापना की। 
 
सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी निष्फल नहीं होता, यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई। काम इतना बढ़ता गया कि सन् 1996 तक उनकी संस्था ने करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे करीबन 5 लाख लोगों की भूख मिटाने लगी 
 
हमेशा नीली किनारी की सफेद धोती पहनने वाली मदर टेरेसा का कहना था कि दुखी मानवता की सेवा ही जीवन का व्रत होना चाहिए। हर कोई किसी न किसी रूप में भगवान है या फिर प्रेम का सबसे महान रूप है सेवा। यह उनके द्वारा कहे गए सिर्फ अनमोल वचन नहीं है बल्कि यह उस महान आत्मा के विचार हैं जिसने कुष्ठ और तपेदिक जैसे रोगियों की सेवा कर संपूर्ण विश्व में शांति और मानवता का संदेश दिया। 
 
लाखों लोगों के इलाज में वे स्वयं जुट गई और शांति के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजी गईं थीं मदर टेरेसा।  मदर टेरेसा आज हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनके विचारों को मिशनरीज ऑफ चैरिटी की सिस्टर्स आज भी जीवित रखे हुए हैं। उन्हीं में से कुछ सिस्टर्स आज भी सेवा कार्य में जुटी हुई हैं। 
 
मिशनरीज ऑफ चैरिटी में रह रही सिस्टर्स तन-मन- धन से अनाथों की सेवा में लगी हुई हैं। सिस्टर्स मानती हैं कि हम लोग जो भी कार्य कर रहे हैं उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद देते हैं, कि उसने हमें इस काम के योग्य समझा। उनकी यह सेवा पूरी तरह निस्वार्थ सेवा है। 
 
सिस्टर्स के साथ दूसरे सहयोगी भी हैं जो सिक होम में रह रहे मरीजों की सेवा करते हैं। उनकी साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं, उन्हें अच्छा खाना देते है। उनके लिए धर्म, जाति और वर्ग का कोई मतलब नहीं है। यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं और एक साथ रहते हैं। उनका कार्य बस उनकी सेवा करना है।

उन्हें 1971 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया। वर्ष 1988 में ब्रिटेन द्वारा 'आईर ऑफ द ब्रिटिश इम्पायर' की उपाधि प्रदान की गई। मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज ऑफ चैरिटी का कार्य लगातार विस्तृत होता रहा और उनकी मृत्यु के समय तक इसके कार्यों का प्रसार 610 मिशन के तहत 123 देशों में हुआ।

अगर किसी की मृत्यु होती है, तो उसका अंतिम संस्कार भी उसी के धर्मानुसार ही किया जाता है। कहा जाता है कि मदर टेरेसा द्वारा स्थापित मिशनरीज ऑफ चैरिटी की शाखाएं असहाय और अनाथों का घर है। 5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा का देहावसान हो गया था।
Show comments

जरूर पढ़ें

भारतीय छात्रों को जस्टिन ट्रूडो ने दिया बड़ा झटका, कनाडा ने फास्ट-ट्रैक वीजा किया समाप्त

हिमाचल में तेज हुई समोसा पॉलिटिक्स, BJP MLA ने CM को भेजे 11 समोसे

यूपी CM के पहनावे को लेकर अखिलेश यादव का तंज, सिर्फ कपड़ों से कोई योगी नहीं बनता

जमानत याचिका मामले में SC ने दिखाई सख्‍ती, कहा- एक दिन की देरी मूल अधिकारों का उल्लंघन

खरगे ने BJP पर लगाया भड़काऊ भाषणों के जरिए मूल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने का आरोप

सभी देखें

नवीनतम

LIVE: अमित शाह ने जारी किया भाजपा का संकल्प पत्र, महाराष्‍ट्र के लिए खोला घोषणाओं का पिटारा

गडकरी बोले, भाजपा की फसल में लगे कीड़े, कीटनाशक छिटकना होगा

कीट पतंगों से बचने के लिये राजगीर में महिला ACT हॉकी मैच दोपहर में होंगे

श्रीनगर में एक और मुठभेड़ जारी, 3 आतंकी घेरे में

कई राज्यों में कोहरे की दस्तक, पहाड़ों को बर्फबारी का इंतजार

अगला लेख