सत्य ही धर्म का मूल

- पं. गोविन्द बल्लभ जोशी

Webdunia
ND

टेढ़े-मेढ़े रास्ते अनेक हो सकते हैं। दो बिंदुओं को मिलाने वाली सीधी रेखा एक ही होती है। एक से ज्यादा नहीं हो सकतीं। ठीक इसी प्रकार आत्मा को परमात्मा से मिलाने वाला या अनुभूति करवाने वाला धर्म भी एक ही हो सकता है। जो मानव मात्र ही नहीं प्राणी मात्र के प्रति बिना किसी भेद भाव के न्याय युक्त ढंग से सब का हित व कल्याण करने वाला हो।

ऐसी सर्वहितकारी भावना वैदिक सनातन धर्म में निहित है। मानव मात्र का धर्म वही हो सकता है जो सृष्टि के आरंभ से चला आया हो। यदि हम सृष्टि की रचना के करोड़ों वर्षों बाद में चलें धर्म को मानव धर्म मान भी लें तब हमें यह मानना ही पड़ेगा कि सृष्टि के आदि से चला हुआ धर्म ही मानव मात्र का धर्म हो सकता है।

यह धर्म सृष्टि के आरंभ में ईश्वर ने चार ऋषियों अग्नि, वायु आदित्य व अंगिरा के हृदय में क्रमशः चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद के ज्ञान का प्रकाश किया। उन चारों ने उस वेद ज्ञान को आम लोगों में उच्चारित करके सुनाया, लोगों ने उस ज्ञान को सुनकर कंठस्थ कर लिया और अपनी संतानों को सुनाते रहे। इस प्रकार यह क्रम करोड़ों वर्षों तक चला। फिर ये लिपिबद्ध कर दिए गए। इसीलिए वेदों को श्रुति भी कहते हैं यानि सुनकर याद किया हुआ ज्ञान।

वेद ज्ञान एक प्रकार की आचार संहिता है जिससे मनुष्य अपने कर्तव्य का बोध करता है उसे अपने जीवन में क्या काम करने चाहिए और क्या काम नहीं करने चाहिए, इसका बोध वेद करवाते हैं। जिस प्रकार एक वैज्ञानिक कोई यंत्र तैयार करता है और फिर उस यंत्र का प्रयोग किस प्रकार किया जाएगा, उसकी एक लघु पुस्तिका तैयार करता है जिसको पढ़कर मनुष्य उसका सुचारू रूप से प्रयोग कर सके और उसका रखरखाव का ढंग भी जान सके।

ठीक इसी प्रकार ईश्वर ने जब मनुष्यों के लिए यह सृष्टि रची तब पहले उसने आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, पेड़, पौधे व वनस्पतियां आदि बनाईं, फिर मनुष्य को एक इस प्रकार का ज्ञान दिया जिससे वह स्वयं भी सुखी रह सके और दूसरों को भी सुखी रख सके। साथ ही मनुष्य के चार पुरुषार्थ जिससे काम को करते हुए उसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त हो सके, यह सब ज्ञान देने के लिए ईश्वर ने चार वेदों के ज्ञान का प्रकाश किया। इस प्रकार वैदिक धर्म सृष्टि के आदि से चला हुआ धर्म है।

ND
ईश्वर सृष्टि का रचयिता है इसलिए हम सबका पिता है और सारे जीवन उसके पुत्रवत हैं। पिता अपने पुत्रों में कभी भी भेदभाव नहीं रखेगा। वह जो कुछ करेगा वह सबके हित के लिए करेगा। इसलिए वैदिक धर्म किसी एक वर्ग समुदाय, जाति व राष्ट्र के लिए नहीं अपितु मानव मात्र के हित व कल्याण के लिए है। वैसे तो यह धर्म प्राणी मात्र के हित के लिए है परंतु मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। इसको अन्य प्राणियों की अपेक्षा बुद्धि विशेष रूप से अधिक दी है जिससे अच्छे बुरे का विचार व चिंतन मनन कर सके और जो अपने तथा दूसरों के हित में हो वह काम कर सके और जो दोनों के हित में न हो वह न करे।

इसलिए मनुष्य को ही अच्छे करते हुए मोक्ष प्राप्त करने का अधिकार दिया है। अन्य प्राणी सिर्फ भोग योनियों में जन्म लेते हुए मनुष्य योनि तक पहुंच सकते हैं। मनुष्य योनि कर्म करने में स्वतंत्र और फल पाने में परतंत्र है और यह योनि कर्म व भोग दोनों है। अन्य पशु-पक्षी, कीट व पतंग सिर्फ भोग योनि हैं वह सिर्फ अपने किए हुए कर्मों का फल भोगते हैं। इनको कर्म करने की स्वतंत्रता नहीं है। इसीलिए मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते। वस्तुतः मोक्ष मानव के कर्मों का फल होता है। मोक्ष सिर्फ मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है। मोक्ष प्राप्त करना मनुष्य की पूर्ण सफलता है। इसलिए हर मनुष्य को मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए।

ईश्वर भी मनुष्य को पृथ्वी पर इसीलिए भेजता है कि तू अपने सद्विचार, सद्व्यवहार, सद् आचार और सद्आहार से अपने आपको सुखी रखता हुआ साथ ही दूसरे प्राणियों को भी सुखी रखता हुआ मोक्ष के परम आनंद को प्राप्त कर। इस प्रकार वेद मानव को मोक्ष प्राप्त होने तक की शिक्षाओं वे उपदेशों का संग्रह है।

इसमें किसी के प्रति भेदभाव या पक्षपात नहीं है, यह सबके हित और भलाई के लिए है। जैसे ईश्वर के बनाए हुए सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि आदि सबके लिए हैं वैसे ही वेदों का ज्ञान भी सबके लिए है। यह प्राणी मात्र की आत्मा को अपनी आत्मा के समान समझने की शिक्षा देता है इसलिए सबसे प्रेम रखना सिखाता है और 'वसुधैव कुटुम्बकम्‌' का पाठ पढ़ा कर विश्व को एक परिवार के समान समझने की प्रेरणा देता है। 'माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्या' अर्थात्‌ पृथ्वी सबकी माता है और हम उसके पुत्र हैं कह कर मानव मात्र को परस्पर भाईचारे का संदेश देता है।

वस्तुतः धर्म कोई बाहरी चिह्न व आडंबर का नाम नहीं है बल्कि उन शाश्वत गुणों का नाम है जिनको जीवन में धारण करने से मनुष्य स्वयं तो सुखी बनकर उन्नति व समृद्धि की ओर अग्रसर होता ही है साथ ही अन्य प्राणियों को भी सुखी बनाता है। जैसे सत्य बोलना, सद्व्यवहार करना, किसी से द्वेष, ईर्ष्या व घृणा न करना, परोपकार करना आदि।

यह सभी गुण पूर्ण रूप से वैदिक धर्म में मिलते हैं। जिसमें सत्य प्रतिष्ठित है इसीलिए वह- 'सत्यं शिवं सुंदरं' को चरितार्थ कर लोकधर्म बन गया।

Show comments

Astro prediction: 4 जून 2024 को किस पार्टी का भाग्य चमकेगा, क्या बंद है EVM में

Tulsi : तुलसी के पास लगाएं ये तीन पौधे, जीवनभर घर में आएगा धन, मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी

Bhaiyaji sarkar: 4 साल से सिर्फ नर्मदा के जल पर कैसे जिंदा है ये संत, एमपी सरकार करवा रही जांच

Astro prediction: 18 जून को होगी बड़ी घटना, सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है भविष्यवाणी

Guru ketu gochar : गुरु और केतु के नवपंचम योग से 3 राशियों को मिलेगा बड़ा फायदा

Aaj Ka Rashifal: क्या कहती है आज आपकी राशि, पढ़ें अपना राशिफल (27 मई 2024)

27 मई 2024 : आपका जन्मदिन

27 मई 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Weekly Forecast 2024 : 27 मई से 2 जून 2024, जानें नया साप्ताहिक राशिफल (एक क्लिक पर)

Weekly Calendar: साप्ताहिक पंचांग कैलेंडर मुहूर्त, जानें 27 मई से 2 जून 2024